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बहुजन द्रविड भाइयो और बहिनों द्वारा प्रथम महिला शिक्षक माता सावित्री ज्योतिबा बाई फूले और इंडियन हॉकी टीम के प्रथम कप्तान कैप्टन जयपाल मुंडा का 2 जनवरी 2022 को जन्मदिवस मनाया गया।

प्रिय बहुजन द्रविड भाइयो और बहनो,

भारत की प्रथम महिला शिक्षिका क्रांतिज्योति माता सावित्री बाई फुले और इंडियन हॉकी टीम के प्रथम कप्तान एवं संविधान सभा में आदिवासी अधिकारों के पुरजोर प्रवक्ता कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा के जन्मदिवस की पूर्वसंध्या पर दिनांक 02 जनवरी, 2022 (रविवार) को दोपहर 02 बजे ‘ज्ञानोदय बुद्ध विहार धनोली जगनेर रोड, आगरा’ पर बहुजन द्रविड पार्टी के तत्वावधान में “बहुजन समाज भाईचारा सम्मेलन” का आयोजन किया गया।

मा. कमल सिंह लोधी जी (प्रदेश उपाध्यक्ष, बीडीपी) के अनुमोदन पर वरिष्ठ बहुजन मिशनरी साथी मा. बाबूलाल बौद्ध जी (रिटायर्ड सहायक आयुक्त, RPF) को सर्वसम्मति से कार्यक्रम का अध्यक्ष चुना गया एवं मुख्य अतिथि के रूप में बीडीपी के राष्ट्रीय महासचिव मा. दिनेश कुमार गौतम जी कार्यक्रम में शामिल हुए।

माता सावित्रीबाई फुले :

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बीडीपी राष्ट्रीय महासचिव मा. दिनेश कुमार गौतम जी ने बताया कि, “19वीं सदी के शुरुआती दौर में अब धार्मिक अंधविश्वास, पाखंडवाद, सतीप्रथा, भ्रूण हत्या, अनमेल विवाह, बहुपत्नी विवाह आदि कुप्रथाएं अपने चरम पर थीं। ऐसे वक़्त में महाराष्ट्र राज्य के सातारा जिला अंतर्गत ‘नयागांव’ में 03 जनवरी, 1831 को पिता खंडोजी नेवसे के घर माता लक्ष्मीबाई की कोख से एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया। वह बचपन से ही होनहार थीं, लेकिन बचपन में उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला।

चूंकि उस समय समाज में बाल-विवाह की कुप्रथा प्रचलित थी, इसलिए 1840 में मात्र 09 वर्ष की आयु में 13 वर्षीय ज्योतिबाराव फुले के साथ सावित्री बाई का विवाह कर दिया गया।

ज्योतिबाराव फुले माली जाति में जन्मे थे, जोकि हिन्दू जाति-व्यवस्था के वर्णक्रम में अंतिम पायदान शूद्र वर्ण में परिगणित होती थी। इसलिए जब वह अपने एक ब्राह्मण मित्र के आग्रह पर उसकी शादी में शामिल हुए तो उनकी माली जाति की वजह से ब्राह्मणों ने उन्हें अपमानित कर शादी समारोह से भगा दिया। इस घटना से दुखी ज्योतिबाराव फुले ने समाज से इस अपमानजनक हिन्दू जाति-व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का प्रण ले लिया। इसके लिए उन्होंने शिक्षा को माध्यम बनाया। पहले स्वयं शिक्षा प्राप्त की और खुद ही अपनी पत्नी सावित्री को भी प्राथमिक शिक्षा दी। उन्होंने सोचा कि पुरुषों की अपेक्षा सर्वप्रथम नारी को शिक्षित करना जरूरी है।

इस सोच के तहत उन्होंने भिंडेवाड़ा, पूना में 01 जनवरी, 1848 को लड़कियों का पहला स्कूल खोला और सावित्रीबाई फुले को उसमें शिक्षिका नियुक्त किया।

फुले के इन सामाजिक, शैक्षिणिक कार्यों से तिलमिलाए ब्राह्मणों ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। उन्होंने ज्योतिबाराव फुले के पिता को भड़काया की तुम्हारे बेटा-बहू हिन्दू धर्म विरोधी कार्य कर रहे हैं। धर्मपरायण पिता ब्राह्मणों के षड्यंत्रों को समझ न सके, उन्होंने अपने बेटे-बहू के सामने शर्त रख दी कि “तुम लोग या तो शूद्र महिलाओं को शिक्षित करने का कार्य बंद कर दो अथवा घर छोड़कर चले जाओ।”

फुले दंपती अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ थे, अंततः उन्होंने घर छोड़ने का फ़ैसला किया। ऐसे वक्त ज्योतिबाराव फुले के करीबी मित्र उस्मान शेख और उनकी छोटी बहन फ़ातिमा शेख ने उन्हें अपने घर में आश्रय प्रदान कर उनके शिक्षा-कार्य में मदद की। सावित्री बाई फुले के साथ फ़ातिमा शेख ने भी महिलाओं को शिक्षित करने का काम किया।

विडंबना देखिए कि माता सावित्रीबाई फुले जब महिलाओं को पढ़ाने जाती थीं तो अनपढ़ महिलाएं उनको गोबर, कीचड़ और पत्थर से मरती थीं। इसलिए माता सावित्रीबाई अपने साथ अलग से एक साड़ी लेकर जाती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी हुई साड़ी बदलकर महिलाओं को पढ़ाती थीं।

इस प्रकार ब्राह्मणी षड्यंत्रों का मुकाबला करते हुए फुले दंपती ने 1848 से 1852 के मध्य कुल 18 स्कूलों की स्थापना की। इसके अलावा महामना फुले द्वारा किये गए अश्पृश्यता उन्मूलन कार्य के साथ ही किसान-मजदूर वर्ग की सेवाएं, बाल-विवाह प्रतिबंध, विधवा-विवाह को प्रोत्साहन, सतीप्रथा की रोकथाम, बलहत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना आदि में भी क्रांतिज्योति माता सावित्रीबाई फुले ने हमेशा बढ़-चढ़ कर उनका साथ दिया।

उनके द्वारा खोले गए ‘बलहत्या प्रतिबंधक गृह’ में पैदा हुए एक बच्चे (यशवंत) को गोद लेकर उन्होंने उसे उच्च शिक्षा प्रदान की और डॉक्टर बनाया।

इसी प्रकार उन्होंने ‘काव्यफुले’ नामक कविता संग्रह की रचना कर साहित्य सृजन का भी महान कार्य किया। वह कुशल वक्ता भी थीं।

1890 में महामना ज्योतिबाराव फुले के परिनिर्वाण के बाद माता सावित्रीबाई फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ का भी सफल संचालन किया।

इसी बीच 1897 में महाराष्ट्र में फैली प्लेग की बीमारी में लोगों की सेवा व उपचार करते हुए वह प्लेग की बीमारी से संक्रमित हो गईं और 10 मार्च, 1897 को उनका दुःखद अंत हो गया।

कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा

साथियों, संयोग की बात है कि सन 1903 में 03 जनवरी के ही दिन हमारे समाज में एक और महान विभूति का जन्म हुआ था, जिन्हें हम सब कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा के नाम से जानते हैं।

जयपाल सिंह मुंडा का जन्म छोटा नागपुर यानी तात्कालिक झारखंड में हुआ था। असाधारण प्रतिभा के धनी जयपाल सिंह मुंडा ने ईसाई मिशनरियों की मदद से ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद और सन 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी थे। उन्ही की कप्तानी में 1928 में भारतीय हॉकी टीम ने पहला स्वर्ण पदक जीता था।

उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में हो गया था। लेकिन जब उन्होंने 1938 में पटना और रांची जिलों का दौरा किया और वहाँ पर आदिवासी समुदाय की दयनीय हालत को देखा तो उन्होंने राजनीति में सक्रिय होकर आदिवासियों की स्थिति में सुधार लाने का फैसला किया। इस तरह वे कई बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।

जनवरी, 1938 में उन्होंने आदिवासी महासभा की अध्यक्षता ग्रहण की और इसके बैनर तले बिहार से अलग आदिवासी बहुल झारखंड राज्य की मांग की। इसके बाद जयपाल सिंह मुंडा देश में आदिवासियों के अधिकारों की पुरजोर आवाज़ बन गए।

आजादी के बाद जब रियासतों के एकीकरण का समय आया तब सरायकेला और खरसावां के आदिवासी समुदाय के लोग अपने आदिवासी बहुल क्षेत्र को उड़ीसा में मिलाने के ख़िलाफ़ थे और अपने लिए अलग झारखंड राज्य की मांग कर रहे थे।

इसी मांग को लेकर कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा की अध्यक्षता में 01 जनवरी, 1948 को खरसांवा बाज़ार में एक जनसभा का आयोजन होना था। वहां पर जयपाल सिंह मुंडा के पहुँचने से पूर्व ही उड़ीसा पुलिस प्रशासन द्वारा बिना पूर्व सूचना के एकत्र हुए आदिवासियों के ऊपर पुलिस को गोलियां चलाने का आदेश दे दिया गया था। पुलिस प्रशासन की इस बर्बता में हजारों आदिवासी शहीद हो गए।

कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा के जीवन का सबसे बेहतरीन समय तब आया जब उन्होंने संविधान सभा में बेहद वाकपटुता से देश के आदिवासियों के बारे में सकारात्मक ढंग से अपनी बात रखी।

उन्होंने संविधान सभा में आदिवासी पहचान और आदिवासी अधिकारों का प्रखर विवेचन किया तथा आदिवासियों को क्या और कैसे अधिकार होने चाहिए, इन महत्वपूर्ण विषयों पर उन्होंने बाबासाहेब डॉ.अम्बेडकर को गंभीर सुझाव दिए। उन सुझावों को ध्यान रखते हुए बाबासाहेब ने संविधान में शैड्यूल ट्राइब्स के संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित किया।

इस प्रकार आदिवासियों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे कैप्टन जयपाल सिंह मुंडा का 20 मार्च, 1970 को 67 वर्ष की आयु में परिनिर्वाण हो गया।

अंत में उक्त दोनों महान विभूतियों को सादर नमन करते हुए मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ।”

राष्ट्रीय महासचिव मा. दिनेश कुमार गौतम जी के अलावा सर्वमान्य बीडीपी प्रदेश उपाध्यक्ष कमल सिंह लोधी, डॉ. विजय प्रताप सिंह, बलवीर सिंह, सतीश भास्कर, एस.सी. विटोलिया, बच्चू सिंह चौधरी, महेन्द्र बाबू, सुर्जन सिंह, उमेश कुमार, प्रदीप कुमार, नित्य प्रकाश सोनी आदि वक्ताओं ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम का संचालन बीडीपी आगरा जिला महासचिव मा. सुनील कुमार केम जी ने किया।

अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष मा. बाबूलाल बौद्ध जी के अध्यक्षीय भाषण के बाद कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा कर दी गई।

इस कार्यक्रम में सर्वमान्य दिनेश कुमार गौतम, बी.एल. बौद्ध, कमल सिंह लोधी, डॉ. विजय प्रताप सिंह, एम.बी. सिंह, रामदास नीलम, सुरेश चंद्र, गोविंद प्रसाद, नरेश कुमार, जुगेंद्र सिंह, ताराचंद बौद्ध, सुरजन सिंह बौद्ध, केदार सिंह, नेकराम सिंह, सुभाष भगत, सुरेंद्र सिंह बौद्ध, विजय सिंह बौद्ध, मिथिलेश देवी, राकेश, राजेश सागर, विजय, संजय कुमार, रिंकू सागर, सुभाष चंद्र, प्रमोद गौतम, राजेश कुमार सिंह, विनोद सागर, उमेश कुमार, प्रदीप कुमार, लाखन सिंह, चंद्रभान, वसंता, विशम्बर सिंह, नित्य प्रकाश सोनी, प्रेम सिंह, राजकुमार नेताजी, प्यारेलाल, महेंद्र सिंह, सतीश गौतम आदि कार्यकर्ता, पदाधिकारी लोग मुख्य रूप से मौजूद रहे।

मा. कांशीराम मिशन में…

अशोक कुमार साकेत
राष्ट्रीय प्रवक्ता
बहुजन द्रविड पार्टी, नई दिल्ली
+91 9717366805

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