जन्मदिन पर श्रद्धानमन । भोजपुरी के महान लोक कलाकार भिखारी ठाकुर । हमारे देश में सदियों से लोककला की महान परंपरा में साहित्य – संगीत और नाटक इन तमाम कलारूपों के श्रेष्ठ कलाकारों का आविर्भाव यहाँ की पावन धरती पर होता रहा है और भारतीय लोककला अपनी विराट चेतना से यहाँ मनुष्य के जीवन को आनंद और मंगल की भावना से अनुप्राणित करती रही है . भोजपुरी बिहार और उत्तर प्रदेश के एक विस्तृत अंचल की आत्मीय भाषा है और भिखारी ठाकुर इसी भाषा के विलक्षण कलाकार थे . उनका जन्म 18 दिसंबर 18 दिसंबर को बिहार के तत्कालीन सारण जिले के कुतुबपुर गाँव में हुआ था और एक गीत में भिखारी ठाकुर ने अपने इस गाँव को याद भी किया है . भिखारी ठाकुर के जमाने में रामलीला मंडलियाँ खूब प्रचलित थीं और इन्होंने भी बड़े होने पर रामलीला मंडली बनायी और आसपास के गाँवों में घूम -घूम कर रामलीलाओं का मंचन करने लगे . ये बेहद प्रतिभाशाली अभिनेता थे और कुशल निर्देशक भी थे . गायन में भी इन्हें महारत प्राप्त था और आगे इन्होंने नाट्य लेखन भी किया . इनके लिखे नाटकों में विदेशिया सर्वाधिक लोकप्रिय है और इसमें नौकरी की तलाश में शहरों में गये ग्रामीण युवाओं में जीवन के भटकाव के अलावा गाँव की औरतों के दुख दर्द का मार्मिक चित्रण है . इनके लिखे अन्य नाटकों में गोबरघिचोर , गंगास्नान और भाई विरोध का नाम प्रमुख है . भिखारी ठाकुर के नाटक समाज में स्त्री जीवन की विसंगतियों के अलावा जातिप्रथा और छुआछूत की प्रथा का भी विरोध करते हैं . इनमें समाज – संस्कृति और धर्म के पाखंड का चित्रण है . भिखारी ठाकुर लोक जागरण के कलाकार थे और उन्होंने भोजपुर अंचल में नयी जीवन चेतना का संचार किया . उनके लिखे गीतों में जीवन के समस्त भावों का समावेश है और देश की पावन माटी का इनमें स्तवन है ।
राजीव कुमार झा