आगरा
कोरोना काल में छोटे से लेकर बड़े व्यापार पूरी तरह ठप हो गया है। भगवान की पूजा और मंदिर को खुशबू से सराबोर करने वाला बेला का फूल भी कोविड-19 के चलते बेदम हो गया। चार महीने तक होने वाली इस फूल की खेती का बाजार लगभग पूरी तरह खत्म हो गया। डिमांड न आने के कारण खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है।
ब्रज के मंदिरों में जाते थे फूल
मथुरा, वृंदावन, बरसाना, गोकुल, महावन, बल्देव समेत ब्रज क्षेत्र में पड़ने वाले मंदिरों में भगवान का साज-श्रंगार बेला के फूलों से किया जाता है। फूल बंगला भी इन्हीं फूलों से सजाया जाता है। इसकी खुशबू मंदिर को महका देती है लेकिन कोरोना के संकट ने इस खेती को भी अपनी जद में ले लिया है। भगवान के चरणों और गले का हार बनने वाले ये फूल इन दिनों खेत में पड़े ही सड़ गए।
तोरा गांव में होती है खेती
आगरा के फतेहाबाद रोड स्थित तोरा गांव में सबसे अधिक बेला के फूलों की खेती होती है। गांव के किसान शैलेन्द्र दीक्षित बताते हैं कि यह खेती केवल चार महीने अप्रैल से प्रारंभ होकर जुलाई तक चलती है। जुलाई का महीना चल रहा है लेकिन डिमांड न होने के कारण फूल खेतों में ही सड़ गए। प्रत्येक वर्ष इस खेती से वह पांच से सात लाख रुपए तक कमा लेते थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। वह सभी बर्बाद हो गए।
कन्नौज का इत्र भी इसी फूल से महकता है
बेला की खेती करने वाले किसान देवेन्द्र बताते हैं कि उनके गांव में अधिकतर लोग बेला के फूलों की खेती करते हैं। गांव से फूल मंदिरों के अलावा कन्नौज भी जाता है। कन्नौज का इत्र भी इसी फूल के अर्क से तैयार होता है। खेती कर तो दी लेकिन अब डिमांड न होने के कारण पूरी फसल खराब हो गई। न तो मंदिरों से डिमांड आई और न कन्नौज से ही। फूल की फसल करने में लगी लागत व्यर्थ जा रही है। तमाम परिवार की आस इस कोरोना ने तोड़ दी है। अभी पता नहीं यह कब तक चलेगा। ग्रामीण विशाल पाराशर कहते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है जब बेला के फूलों की डिमांड नहीं आई नहीं तो खेती होने के साथ ही लोग इसे बुक कर जाते हैं।