भारत ने 2035 तक स्वदेशी अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करने की तैयारियां तेज कर दी है। ऐसे में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को भारी-भरकम पेलोड कक्षा में स्थापित करने के लिए सक्षम रॉकेट की जरूरत होगी। इसे विकसित करने में साझेदारी के लिए उद्योग जगत के सामने प्रस्ताव रखा गया है।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया कि ऐसे रॉकेट को अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) कहा जाएगा। अंतरिक्ष एजेंसी इसके डिजाइन पर काम कर रही है। वहीं, इसके विकास में उद्योग साझेदारी करने का प्रस्ताव रखा गया है। उन्होंने बताया कि इस रॉकेट से भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में 10 टन पेलोड ले जाने या पृथ्वी की निचली कक्षा में 20 टन पेलोड ले जाने की योजना है। एनजीएलवी को भारी मात्रा में उत्पादन के लिए सामान्य व मजबूत मशीन के रूप में डिजाइन किया गया है। इससे अंतरिक्ष में परिवहन किफायती होगा।
सोमनाथ ने बताया कि ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान 1980 के दशक में विकसित प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं और भविष्य में रॉकेट प्रक्षेपित करने में इनका इस्तेमाल नहीं हो सकता। एनजीएलवी की डिजाइन एक साल में तैयार करने की योजना बनाई है। 2030 में इसका पहला प्रक्षेपण प्रस्तावित है।
एनजीएलवी हरित ईंधन से संचालित तीन स्तर वाला रॉकेट होगा। जिसमें मीथेन व तरल ऑक्सीजन या केरोसिन और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जा सकता है। एनजीएलवी पुन उपयोग वाले स्वरूप में 1900 डॉलर प्रति किलोग्राम की लागत में और उत्सर्जनीय स्वरूप में 3000 डॉलर प्रति किलोग्राम की दर से पेलोड ले जा सकता है।