कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में करीब 24 सालों के बाद गैर-गांधी अध्यक्ष मिला है। वह 26 अक्टूबर को कार्यभार संभालेंगे। हालांकि, उनके सामने 2022, 2023 विधानसभा चुनाव के अलावा 2024 लोकसभा चुनाव और पार्टी में जारी दल-बदल जैसी परेशानियां भी हैं। इसके बाद भी सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या वह भारतीय जनता पार्टी का सामना करने के लिए कांग्रेस को तैयार कर पाएंगे।
जानकारों का कहना है कि भाजपा का सामना करने के लिए खड़गे को कई चुनौतियों से पार पाना होगा। इसके लिए उन्हें यह साबित करना होगा कि वह गांधी परिवार के प्रॉक्सी नहीं हैं और दल पर उनका नियंत्रण है। हालांकि, उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि वह शायद हर फैसले में नेहरू-गांधी परिवार से विचार विमर्श न करें, लेकिन अनुभव को देखते हुए वह गांधी परिवार का मार्गदर्शन और सलाह लेंगे।
असम, पंजाब से राजस्थान तक मल्लिकार्जुन खड़गे को मिली ‘हार’, संकटमोचक कैसे उठाएंगे कांग्रेस का भार?
बीबीसी से बातचीत में राजनीतिक जानकार के बेनेडिक्ट कहते हैं कि खड़गे ‘नाराज को शांत करने और अलग-अलग धड़ों में तनाव कम करने में कुशल हैं। वह वो नहीं हैं, जो दूसरों से लड़ता है।’ हालांकि, कुछ इस बात पर भी हैरानी जता रहे हैं कि दक्षिण भारत के राजनेता की उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तरी राज्यों में पहुंच कैसे मजबूत होगी।
रिपोर्ट के अनुसार, पत्रकार पूर्णिमा जोशी का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को नई धार देने के लिए उनमें गतिशीलता की कमी है। उन्होंने कहा, ‘वह सभ्य और जड़ से जुड़े राजनेता हैं। कोई भी उन्हें हल्का नहीं बता सकता। लेकिन कांग्रेस को दोबारा तैयार करने के मामले में खड़गे पार्टी में मौजूद खाई को पाटने में फिट नहीं बैठते।’
उन्होंने यह भी कहा कि इस बात की संभावना कम हैं कि वह मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती दे सकेंगे। जोशी ने कहा, ‘कांग्रेस को कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए, जो उनकी भाषा बोलता हो, कोई चतुर, कोई जो भाजपा को उसी के खेल में हरा सके।’ हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष शायद ‘वैचारिक रूप से भाजपा से लड़ सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘लोग जब दो पक्षों की तुलना करेंगे, तो उन्हें सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया देंगे। फिलहाल, इसे देखा जाना बाकी है।’
असफल संकटमोचक हैं खड़गे!
इस समय कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती पार्टी के ही एक नाराज तबके को शांत करने की है। वहीं, कुछ पुराने मामले देखें, तो खड़गे पार्टी को संकट से निकालने में न केवल असफल रहे हैं, बल्कि हालात इतने बिगड़े कि कांग्रेस को सत्ता तक गंवानी पड़ी। इनमें असम, पंजाब का मामला शामिल है। इसके अलावा हालिया राजस्थान घटनाक्रम भी इस बात का गवाह है, जहां खड़गे पार्टी के नेता अजय माकन के साथ पर्यवेक्षक के तौर पर पहुंचे थे।
खड़गे का सफर
दलित नेता खड़गे ने राजनीतिक सफर की शुरुआत कलबुर्गी के सरकारी कॉलेज से की थी। करियर के शुरुआत में वह छात्र राजनीति से भी जुड़े रहे। साल 1972 से लेकर 2008 तक उन्होंने लगातार गुरमितकल सीट से जीत दर्ज की। इसके अलावा राज्य की राजनीति के दौरान वह कई बार कैबिनेट मंत्री भी रहे। खास बात है कि राज्य के वरिष्ठ नेता होने के बाद भी वह तीन बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने से चूक गए।