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श्री पारस अस्पताल: रसूख के आगे बौने पड़ गए चिकित्सा मानक, नहीं जांची अनापत्तियां, कार्रवाई से कतराते रहे जिम्मेदार

रसूख के आगे श्री पारस अस्पताल में चिकित्सा मानक बौने हो गए। राजनीतिक वरदहस्त से एक बार महामारी फैलाने के बावजूद फिर दूसरी बार अघोषित क्लीनचिट मिल गई। जबकि श्री पारस में इमारत से लेकर प्रदूषण, अग्निसुरक्षा, आईसीयू विशेषज्ञों के मानक तार-तार होते रहे। सूबे में हलचल मचाने वाले कथित मॉकड्रिल कांड के बाद प्रशासन की नींद टूटी। अस्पताल सील किया। सिर्फ श्री पारस ही नहीं, अन्य कोविड अस्पतालों ने भी आपदा में मरीजों से धन दोहन में कोई कसर नहीं छोड़ी। दो बार महामारी फैलाने के आरोपों में फंसे श्री पारस अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग ने कभी अनापत्तियां तक नहीं जांची। जिम्मेदार विभाग कार्रवाई से कतराते रहे। वीडियो कांड के बाद अस्पताल में अनियमितताओं की परतें खुल रही हैं। जिनसे स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा हो गया है। भगवान टॉकीज के पास दो बिल्डिंगों में श्री पारस अस्पताल संचालित है। पहली बिल्डिंग जिसमें कोविड सेंटर है। बराबर से दूसरी बिल्डिंग में जनरल वार्ड हैं। बेसमेंट में आईसीयू है। जबकि चिकित्सा मानकों के मुताबिक बेसमेंट में आईसीयू नहीं हो सकता। दोनों बिल्डिंगों के नाम से जल एवं वायु प्रदूषण की एनओसी नहीं ली गई। आगरा विकास प्राधिकरण से बिल्डिंग का मानचित्र स्वीकृत नहीं है। नगर निगम और अग्निशमन विभाग से भी एनओसी नहीं ली गई। इसके बावजूद यहां एक साल से मरीज भर्ती का खेल चलता रहा।

दूसरी बार फैलाई महामारी
श्री पारस अस्पताल पर दूसरी बार महामारी फैलाने का आरोप है। पिछले साल अप्रैल 2020 में श्री पारस अस्पताल ने 11 जिलों के 96 मरीज भर्ती किए थे। प्रशासन व स्वास्थ विभाग को सूचित तक नहीं किया। एक संक्रमित महिला की मौत हो गई तब श्री पारस की लापरवाही सामने आई। जिलाधिकारी ने तब पहला महामारी एक्ट में मुकदमा दर्ज कराया था। इस साल दूसरी लहर में फिर अस्पताल को संक्रमित भर्ती करने की अनुमति मिल गई। ऐसे में सवाल है कि जिला प्रशासन ने अस्पताल का पुराना रिकॉर्ड क्यों नहीं देखा।

जल-वायु प्रदूषण बोर्ड की नहीं सहमति

श्री पारस अस्पताल ने जल एवं वायु प्रदूषण निवारण अधिनियम की धारा 25 के तहत प्रदूषण बोर्ड से सहमति नहीं ली। सिर्फ बायो वेस्ट की अनुमति के आधार पर अस्पताल चलता रहा। मानक के मुताबिक अस्पताल में शल्य क्रिया व चिकित्सकीय कार्य के दौरान निकलने वाले रक्त को सीधे नाली में नहीं बहाया जा सकता। इसके लिए अस्पताल को विशेष ट्रीटमेंट प्लांट लगाना पड़ता है। प्लांट लगाने पर प्रदूषण बोर्ड से जल प्रदूषण निवारण की सहमति लेनी होती है। सहमति लेना अस्पताल के लिए अनिवार्य है।
बिल्डिंग का नक्शा पास नहीं 
श्री पारस अस्पताल की बिल्डिंग का नक्शा आगरा विकास प्राधिकरण से पास नहीं है। बिना एडीए की एनओसी के बिल्डिंग में मरीज भर्ती हो गए। जिस बेसमेंट में पार्किंग होनी चाहिए, उसमें आईसीयू खोल लिया। जिसमें मरीजों को भर्ती किया जाता था। सड़क पर पार्किंग बना दी। चार साल तक एडीए ने कभी जांच की जहमत नहीं उठाई। जब दमघोंटू मॉकड्रिल का मामला सामने आया उसके बाद एडीए ने बिल्डिंग को अवैध बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया। अवैध बिल्डिंग पर कोई जुर्माना तक नहीं किया।
नजूल से नहीं कराई जांच
अस्पताल जिस स्थान पर बना है वहां कभी सिंचाई विभाग की नहर बहती थी। सिंचाई विभाग से कोई एनओसी नहीं ली गई। साथ ही जमीन नजूल भूमि तो नहीं इसके लिए भी कलक्ट्रेट व तहसील से एनओसी लेनी पड़ती है। श्री पारस अस्पताल में नजूल व सिंचाई दोनों विभागों से जांच नहीं कराई गई। बल्कि राजनीतिक रसूख की आड़ में अवैध बिल्डिंग में धड़ल्ले से अस्पताल खोल लिया। नजूल विभाग की एनओसी के बिना एडीए नक्शा पास नहीं कर सकता।