आगरा
मुगल शहंशाह शाहजहां का 367वां उर्स ताजमहल में 27 फरवरी से एक मार्च तक मनाया जाएगा। तीन दिवसीय उर्स में गुस्ल, संदल और चादरपोशी की रस्में होंगी। शाहजहां से पूर्व ताजमहल में मुमताज का उर्स मना था। इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में इसका उल्लेख किया है। उस समय ताजमहल बन ही रहा था। 303 वर्ष पूर्व मुमताज का उर्स मनना बंद हो गया था।
आस्ट्रियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब “दि कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा में’ मुमताज का पहला उर्स 22 जून, 1632 को ताजमहल के उद्यान में मनाए जाने का जिक्र किया है। उस समय ताजमहल का निर्माण चल रहा था। उर्स में लोगों ने सफेद कपड़े पहनकर शिरकत की थी और आभूषण भी सफेद रंग के पहने थे। शाहजहां ने कुरान की आयतें पढ़ने के साथ मुमताज की आत्मा की शांति को दुआ की थी। गरीबों व जरूरतमंदों को 50 हजार रुपये बांटे गए थे। उर्स में शामिल हुई शाही परिवार की महिलाओं ने भी जरूरतमंदों को 50 हजार रुपये बांटे थे। शाहजहां ने उस समय प्रतिवर्ष एक लाख रुपये की धनराशि उर्स के लिए तय की थी। दूसरी बार मुमताज का उर्स 26 मई, 1633 को मनाया गया था। उस समय यमुना किनारे पर मकबरे का निचला तल बनकर तैयार हो गया था। वर्ष 1643 में मुमताज का 12वां उर्स मना था। वर्ष 1666 में शाहजहां की माैत के बाद उसका उर्स शुरू हुआ।
मुमताज के उर्स का आयोजन 303 वर्ष पूर्व बंद हो गया था। आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने अपनी किताब “मुगलकालीन भारत’ और इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी किताब “तवारीख-ए-आगरा’ में मुमताज का उर्स बंद होने की जानकारी दी है। राजकिशोर राजे बताते हैं कि छह जून, 1719 को सैयद बंधुओं ने दिल्ली में रफीउद्दौला को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया था। वहीं, मित्रसेन नागर ने आगरा किला में निकुसियर को गद्दी पर बैठाया। सैयद बंधुओं ने आगरा पर हमला कर निकुसियर को कारावास में डाल दिया, जिसके बाद मित्रसेन नागर ने आत्महत्या कर ली। सैयद बंधुओं में छोटे भाई हुसैन अली ने शाही कोष पर कब्जा कर लिया। इसमें मुमताज के उर्स में प्रतिवर्ष चढ़ाई जाने वाली मोतियों की चादर भी थी। चादर लुटने के बाद मुमताज का उर्स मनना बंद हो गया।