आगरा
दहेज लोभी हत्यारे, लाऊं क्या-क्या मायके से हां, जिद पर जिद तुम हरदम करते हो। यह बात पिता को बताऊं कैसे, मोटर कार के लिए मरते हो। प्रभाकर सिंह की यह कविता दहेज के दानव पर सही साबित होती है। तमाम दावे होते हैं कि समाज आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है। रुढि़वादी परंपराएं खत्म हो रही हैं लेकिन आज भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जहां बहुओं को दहेज न लाने पर ताना झेलना पड़ रहा है। उत्पीड़न कार और बाइक के नाम पर हो रहा है। आगरा मंडल में वर्ष 2021 में दहेज की बलिवेदी पर 167 विवाहिताओं की चिता जली। दहेज प्रथा के खिलाफ तमाम जागरूकता के बावजूद, ये आग कब बुझेगी, बेटियों को इसका इंतजार है।
-212: मथुरा में छह वर्ष के दौरान विवाहिताओं की दहेज के चलते मृत्यु के मुकदमे दर्ज किए गए।
-212: मैनपुरी में छह वर्ष के दौरान विवाहिताओं की दहेज के चलते मृत्यु के मुकदमे दर्ज किए गए।
-293: फिरोजाबाद में छह वर्ष के दौरान विवाहिताओं की दहेज के चलते मृत्यु के मुकदमे दर्ज किए गए।
दहेज की बलिवेदी पर जान देने की सबसे ज्यादा घटनाएं आगरा में हुईं। वर्ष 2015 में 76, वर्ष 2014 में 84 और वर्ष 2013 में 89 मुकदमे दर्ज किए गए। जबकि वर्ष 2012 में 85, वर्ष 2011 में 80 एवं वर्ष 2010 में 74 मुकदमे दहेज के लिए मृत्यु के संबंध में दर्ज किए गए
विवाहिताओं के लिए बाइक और दहेज सौतन साबित हो रही हैं। दहेज के लिए हुई अधिकांश विवाहिताओं की मृत्यु के मामले में पति और ससुराल वालों द्वारा अतिरिक्त दहेज के रूप में बाइक या कार मांगी गई थी। जिसके चलते विवाहिता का उत्पीड़न किया गया। हाई प्रोफाइल कुछ मामलों में भूखंड की मांग भी करने का मामला सामने आया।