आगरा
लाकडाउन से नुकसान झेल रहे किसानों के सामने रोज नया संकट खड़ा हो रहा है। पहले सब्जियों को बेहतर दाम नहीं मिला, तो उसके बाद स्थानीय फलों को भी बाजार नहीं मिला था। गत फसल पर आलू को ऊंचे दाम नहीं मिले तो बाद में व्यापारियों ने मुनाफा कमाया। इस बार खोदाई से ही मायूसी हाथ लग रही है, क्योंकि हर खेत में प्रति बीघा 15 से 20 कुंतल कम आलू निकल रहा है। वहीं कंद का आकार भी छोटा होने के कारण बाजार में प्रतिस्पर्धा में मुश्किल होगी।
खंदौली के किसान जगपाल सिंह पांच बीघा में आलू की फसल करते हैं। गत सप्ताह से खोदाई शुरू कर दी है, लेकिन चेहरे पर मायूसी है। इसका कारण है कि उत्पादन घट गया है। किसान जगपाल ने बताया कि दो वर्ष पहले बेटी की शादी की थी, जिसके लिए बाजार से कर्ज लिया था। गत वर्ष फसल पर बेहतर दाम नहीं मिला। इस बार खोदाई से उम्मीद थी, लेकिन प्रति बीघा 15 से 20 कुंतल कम आलू निकल रहा है। बिचपुरी के किसान शैलेंद्र सिंह का भी कुछ ऐसा ही हाल है। उन्होंने बताया कि एक बीघा में 85 से 90 कुंतल तक आलू होता था, लेकिन मौसम की मार से कंद का आकार घट गया है, जिससे 70 से 75 कुंतल तक उत्पादन हो रहा है। उन्होंने बताया कि सब्जियों, आंवला को भी सही दाम नहीं मिले थे। इस बार नई मोटर साइकिल लेने की योजना थी। आलू का कंद छोटा रहने के कारण इसे बेहतर बाजार नहीं मिल पाएगा। बाह के किसान भगत सिंह ने बताया कि 80 बीघा में आलू का उत्पादन करते हैं। आलू पर मौसम की मार पड़ी है, लेकिन समय से जागरूक होने के बाद भी 10 कुंतल प्रति बीघा का उत्पादन घट गया है।
जिले में 71 हजार हेक्टेअर में आलू की फसल होती है। 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच बोवाई और 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच खोदाई की जाती है। गत वर्ष बंपर उत्पादन हुआ था और अधिकतर किसानों ने भंडारण कर लिया था। कर्नाटक, पंजाब सहित दूसरे राज्यों की फसल आने के कारण स्थानीय आलू की मांग घट गई थी। इस कारण दिसंबर तक आलू का भंडारण रहा, जबकि कुछ आलू की निकासी ही नहीं हो सकी थी। इस बार बोवाई के समय बारिश होने के कारण अगैती फसल को नुकसान हो गया था, जबकि बोवाई कुछ देरी से हुई थी।
आलू का कंद जिन दिनों आकार ले रहा था, उस दौरान 15 दिन धूप नहीं निकली। इससे पौध सुसुप्त अवस्था में चली गई। इसके साथ ही बारिश होने के कारण किसानों ने पानी लगाने में लापरवाही की है।