योगी पुलिस अब पुलिस न होकर वर्दीधारी गुंडे हो चले हैं। कहीं हाथरस के DM पीड़िता के परिवार पर ज़ोर आजमाइश करते हैं तो कहीं पूरे परिवार को नजरबंद रखकर उन्हें डराया – धमकाया जाता है।
कहीं योगी पुलिस किसी को भी पीड़ित परिवार से मिलने नहीं देती तो कहीं पत्रकारों के साथ अभद्रता करती नजर आती है। अपने देखा होगा किस तरह एक टीवी चैनल की पत्रकार के साथ अभद्रता करती दिखी। पत्रकार गांव के अंदर जाने नहीं दिया जबरन गाड़ी में बिठा कर गांव के बाहर छोड़ दिया गया।
एक पीड़ित परिवार से पत्रकारों को मिलने से रोकने का क्या अर्थ हो सकता है। आखिर किस सुरक्षा का पालन किया जा रहा है हाथरस पुलिस द्वारा। राजनेताओं को परिवा शायद इसलिए नहीं मिलने दिया जा रहा हो कि कहीं ये राजनैतिक मुद्दा न बन जाए। ये समझ में आता है। लेकिन पत्रकारों की स्वतंत्रता में बाधा क्यों पैदा की जा रही है। क्या कारण है जो पत्रकारों से योगी पुलिस गुंडों जैसा बर्ताव कर रही है।
आखिर क्यों देश के चौथे स्तंभ का हनन होता नज़र आ रहा है। पहले विकास दुबे के मामले में पत्रकारों को एनकाउंटर की जगह से कुछ दूर रोक दिया गया। और रहस्यमय तरीके से एनकाउंटर कर दिया गया।
और अब मनीषा के मामले में भी पत्रकारों को पीड़ित परिवार से बात नहीं करने दी जा रही है। अगर पुलिस ये सब किसी सुरक्षा के नजरिए से कर रही है तो फिर पीड़ित परिवार को डराया धमकाया क्यों जा रहा है। क्यों परिवार के सदस्यों के मोबाइल फोन छीन लिए गए हैं। क्यों उन पर कुछ न बताए जाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
आखिर कर क्या रही हाथरस पुलिस ओर किसके आदेश पर क्या आरोपित पक्ष का कोई रसूखदार व्यक्ति है जो ये सब करवा रहा है या फिर पुलिस का ऐसा करने की कुछ ओर वजह है ? ये तो समय आने पर ही पता लग पाएगा।