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आगरा:- 250 साल में पहली बार टूटेेेेगी आगरा की ये परंपरा, जानिए क्‍या रहा है इतिहास

आगरा/XMT न्यूज़:

सावन के दूसरे सोमवार को शहर के चारोंं कोनों पर स्थापित कैलाश, बल्केश्वर, राजेश्वर और पृथ्वीनाथ मंदिर में विराजमान महादेव की सदियोंं से परिक्रमा होती आई है। मान्यता है कि महादेव को प्रसन्न करने और शहर को आपदाओं से मुक्त रखने के लिए सदियों से सावन के दूसरे सोमवार को इन शिवालयों की परिक्रमा होती है और पूरी ताजनगरी बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठती है। मगर, काेरोना महामारी में सदियों से चली आ रही परंपरा टूट रही है। संक्रमण न फैले इसके चलते सावन के दूसरे सोमवार पर लगने वाली नगर परिक्रमा को अनुमति नहीं मिली है। पहली बार होगा कि परिक्रमा मार्ग पर भोले की जयकार करने वाले भक्त नहीं होंगे। सालों से परिक्रमा लगाते आ रहे भक्तों को भी इस बार घर पर रहकर ही भोले को मनाना होगा।

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ये है परिक्रमा का इतिहास

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श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना का खास महत्व है। आगरा के लिए तो यह महीना और भी महत्व रखता है। यहां शहर के चारों कोनों पर विराजमान शिवालयों की परिक्रमा की जाती है। शिव की भक्ति में लीन भक्त नंगे पांव करीब 40 किमी की परिक्रमा कैलाश, बल्केश्वर, राजेश्वर, पृथ्वीनाथ महादेव मंदिरों के दर्शन करते हुए लगाते हैं। पूरे उत्तर भारत में इस तरह की परिक्रमा कहीं और नहीं लगाई जाती। इसकी शुरुआतऔर इतिहास को लेकर जानकारों के अलग-अलग मत हैं। इतिहासविद् राजकिशोर राजे बताते हैं कि परिक्रमा प्राचीन काल से लगती आ रही है। औरंगजेब के शासनकाल में इस परिक्रमा को रोक दिया गया था। औरंगजेब की मौत के बाद 1775 में मराठाओं का प्रभुत्व बढ़ा। करीब 250 साल पहले आगरा उनके आधिपत्य में आ गया था। उन्होंने यहां सल्तनत व मुगल काल में ध्वस्त कराए गए 14 मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। मराठों ने शिव मंदिरों और जाटों ने कृष्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। मराठाकाल में फिर से यह प्रसिद्ध परिक्रमा शुरू हुई। तब से पहली बार ऐसा होगा कि परिक्रमा नहीं होगी। वहीं, इतिहासकार प्रो. सुगम आनंद बताते हैं कि शहर में जो प्राचीन शिव मंदिर हैं, वे राजपूत काल के हैं। यह तुर्कों के आक्रमण से पहले के हैं। हर मंदिर का अलग इतिहास है। मध्यकाल में इन मंदिरों को महत्व मिला और वहां मेले लगाए जाने लगे। मंदिर शहर के कोनों पर थे, इसीलिए परिक्रमा शुरू हुई। मुगल शहंशाह अकबर के समय राजा मानसिंह ने संरक्षण दिया था। राजनीतिक कारणों से मंदिर तोड़े भी गए। उनका मानना है कि19वीं से शताब्दी से परिक्रमा शुरू हुई थी और तब से लगती आ रही है।

 

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