आगरा
आगरा के रहने वाले रतन सिंह भदौरिया जब सेना में थे, तब उन्होंने अपने प्रदर्शन से देश का गौरव बढ़ाया। ट्रैक छोड़ा, मगर जज्बा नहीं। अपनी कोचिंग में ऐसे अनेक खेल रत्न तराशे, जिन्होंने दुनिया में नाम कमाया। 70 वर्ष की उम्र में भी वह युवाओं में जोश भर रहे हैं। वह प्रतिदिन शाम को युवाओं को सेना की भर्ती की तैयारी कराने में जुटे रहते हैं। अब उनका ख्वाब अधिक से अधिक युवाओं को सेना की भर्ती के लिए शारीरिक रूप से सशक्त बनाना है।
बाह के कुंवरखेड़ा निवासी रतन सिंह भदौरिया ने वर्ष 1978 में बैंकाक में हुए एशियन गेम्स में 1500 मीटर दौड़ में कांस्य पदक हासिल किया था। उस समय वह सेना में तैनात थे। वर्ष 1988 से 1990 तक सेना के चीफ कोच रहे। वर्ष 1994 में सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने गांव-देहात के युवाओं को खेल के प्रति प्रेरित करना जारी रखा। वर्ष 2000 में स्टेडियम में एथलेटिक्स के कोच का पद संभाला। करीब एक दशक तक स्टेडियम में कोच रहे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर तक किसी खिलाड़ी को न पहुंचाने की ठीस महसूस होने पर उन्होंने कोच के पद से इस्तीफा दे दिया। भदौरिया ने इसके बाद रेलवे इंस्टीट्यूट में सेना भर्ती के लिए युवाओं को फिजिकली फिट रहने की तैयारी देना शुरू किया। इन दिनों प्रतिदिन शाम को बीडी जैन कालेज के मैदान में उनकी क्लास लगती है। इसमें वह युवाओं को सेना की भर्ती व स्पोर्ट्स कोटे में निकलने वाली नौकरियों, ट्रायल के लिए शारीरिक रूप से फिट होने का प्रशिक्षण देते हैं। वर्तमान में भी करीब तीन दर्जन युवा उनसे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
रतन सिंह भदौरिया बताते हैं कि उनकी कोशिश है कि वह युवाओं को शारीरिक रूप से सेना में भर्ती के लिए सक्षम बना सकें। अपना अधिक से अधिक समय वह इसके लिए देते हैं और यहां मिडिल व लांग डिस्टेंस रनर को तैयार कर रहे हैं। युवाओं को शार्टकट नहीं अपनाना चाहिए। उन्हें मेहनत करनी चाहिए।
वर्ल्ड एथलेटिक्स डे के आयोजन की शुरुआत वर्ष 1996 में हुई थी। तब से यह प्रतिवर्ष सात मई को मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य लोगों को फिटनेस के प्रति जागरूक करना और खेलने के लिए प्रोत्साहित करना है।