आगरा
गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य पं. श्रीराम शर्मा की जन्मस्थली और तपोभूमि आंवलखेड़ा दुनिया भर को गायत्री मंत्र देने के बाद अब देशभर को खट्टी मीठी रसभरी बांट रही है। आलू उत्पादन के मामले में एक समय में अग्रणी रहने वाले इस इलाके के किसान आलू को छोड़कर अब रसभरी की पैदावार करने में जुटे हैं। रसभरी का रस इस प्रकार आंवलखेड़ा क्षेत्र में फैल गया है कि किसान गेहूं, आलू, सरसों, जौ और बाजरा जैसी फसलों को छोड़ फल की खेती में जुट गए हैं।
आगरा जिले ग्राम आंवलखेड़ा से रसभरी की सप्लाई उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों में प्रतिदिन की जाती है। बरहन क्षेत्र के आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में पिछले 30 वर्षों से किसान सैकड़ों बीघा में रसभरी की फसल उगा रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में रसभरी के रकबे में और ज्यादा इजाफा हुआ है। आसपास के किसान सीजन के हिसाब से उगाई जाने वाली फसलों को छोड़कर रसभरी उगाने लगे हैं। किसान सोनू सिंह के मुताबिक क्षेत्र में आलू की पैदावार अत्यधिक थी लेकिन लगातार हो रहे नुकसान की वजह से किसान रसभरी की फसल की तरफ निरंतर बढ़ते जा रहे हैं।
रसभरी की फसल उगाने के लिए किसान मई माह में खेत में बीज की बुवाई कर पौधे उगाते हैं। पौध तीन महीने में तैयार हो जाती है। जिसे किसान सावन के महीने में खेतों में रोपाई करते हैं और यह लगभग जनवरी माह में फलदायक हो जाता है। जिससे रसभरी लगातार जनवरी, फरवरी और मार्च महीने में आती रहती है। होली के बाद यह फसल समाप्त हो जाती है।
तीन महीने लगातार मिलता है फल
जानकारी के मुताबिक पूरे एक वर्ष में ये इकलौती फसल उगाई जाती है। जिससे लगातार तीन माह तक फल मिलता है। जनवरी में फल कम मिलता है। लेकिन बाज़ार में फल की कीमत ज्यादा मिलती है। फ़रवरी और मार्च में फल की कीमत कम होती जाती है और फसल की पैदावार बढ़ती जाती है।
गांव में ही आते हैं व्यापारी
किसानों के मुताबिक गांव में आगरा, मथुरा, दिल्ली, जयपुर सहित अन्य जगह के व्यापारी फसल से पूर्व आना शुरू हो जाते हैं। जो अच्छी कीमत में फसल खरीदते हैं। गांव में आने वाले किसान बाहर सप्लाई देते हैं।