आगरा
पापा, खारकीव पर रूस बड़ा हमला करने वाला है। हमें रात नौ बजे तक खारकीव छोडने की वार्निंग एडवाइजरी जारी हुई है।इसलिए खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हम सभी 600 भारतीय विद्यार्थी सुरक्षित ठिकाने की तलाश में भूखे-प्यासे भटक रहे हैं। सुबह रेलवे स्टेशन पहुंचे, लेकिन भीड़ ने हमें ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया। अब पैदल ही सुरक्षित ठिकाने की तलाश में निकल पड़े हैं। स्थिति यह है कि तीन दिन से हम 10 विद्यार्थी एक पैकेट बिस्कुट को आपस में बांटकर अपनी भूख मिटा रहे हैं।
बुधवार सुबह पांच बजे शास्त्रीपुरम, ए ब्लाक निवासी अंजली पचौरी ने खारकीव से अपने पिता बृजमोहन पचौरी को फोन पर यह स्थिति बताई, तो पूरा परिवार दहशत और खौफ से भर गया है। अब परिवार को एक-एक मिनट बिताना भारी प़ड़ रहा है, सभी हर-पल बेटी की सलामती की चिंता सता रही है। पिता बृजमोहन पचौरी ने बताया कि जब से बेटी का फोन आया है, घर में किसी ने खाना नहीं खाया, क्योंकि बेटी तीन दिन से भूखी है। मैस में 600 विद्यार्थियों के लिए खाना नहीं बचा। दिनभर में एक-एक बिस्कुट के पैकेट में से दो-दो बिस्कुट खाकर और पेटभर पानी पीकर पांच से 10 विद्यार्थी अपनी भूख मिटा रहे हैं। माइनस तीन डिग्री में बच्चे भूखे-प्यासे सुरक्षित ठिकाने की तलाश में 20 से 30 किमी पैदल ही चल रहे हैं।
उन्होंने बताया कि भारतीय दूतावास ने यूक्रेन में फंसे भारतीय विद्यार्थियों को वार्निंग एडवाइजरी जारी की थी कि बुधवार रात नौ बजे तक खारकीव को छोड़कर सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच जाएं। इसके बाद खारकीव मेडिकल यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी सुरक्षित ठिकानों की तलाश में माइनस तीन डिग्री तापमान में भूखे-प्यासे कई किलोमीटर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचे, लेकिन रेलवे स्टेशन पर हजारों लोगों की भीड़ ने भारतीय विद्यार्थियों को ट्रेनों में चढ़ने नहीं दिया। इसलिए सभी हाथों में तिरंगा लेकर पैदल ही पेसोचिन, बाबाए और बेजलुद्दोवा गांवों के लिए पैदल ही निकल लिए हैं, जो वहां से करीब 11 से 16 किमी दूर हैं। लेकिन वहां तक पहुंचने में बच्चों के साथ स्थानीय यूक्रेनी लोग कैसे व्यवहार करेंगे, कहीं उनसे लूटपाट या मारपीट आदि न हो जाए, इसको लेकर हम सभी डरे हुए हैं।
बुधवार शाम को तहसीलदार सदर रजनीश कुमार ने अंजली के घर जाकर पीड़ित परिवार से बातचीत कर उन्हें बेटी की सुरक्षित वापसी का भरोसा दिलाया। परिवार का कहना है कि इतने बुरे हालात की जानकारी जब सरकार को पहले से थी, तो उन्होंने इतनी स्ट्रांग वार्निंग पहले क्यों नहीं दी। अब बच्चे फंसे हैं और उन्हें निकालने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे है, ऐसे में उन्हें कैसे बचाया जाएगा।
वहीं दौरेठा निवासी सुदीक्षा सिंह खारकीव से दोपहर ढ़ाई बजे बमुश्किल ट्रेन में सवार हो पाई। पिता पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि बेटी ने फोन पर बताया कि वह मंगलवार से स्टेशन पर थीं, लेकिन ट्रेनों में बहुत भीड़ थी। आज तीसरे पहर साढ़े चार बजे वह ट्रेन में भारी धक्कामुक्की के बीच अपने 15 साथियों के साथ चढ़ने में सफल हो गई हैं। हालांकि यूक्रेनी लोगों ने उन्हें पीछे धकेलने और खींचने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह ट्रेन में सवार होने में सफल रही, ट्रेन में सुरक्षित हैं और हंगरी या रोमानिया, जहां से भी निर्देश मिलेंगे, बार्डर क्रास करने की कोशिश करेंगी। इस खबर से हमें थोड़ी राहत मिली है।