आगरा
आइआइटी रुड़की जैसे विश्वप्रसिद्ध संस्थान से बीटेक। इंडियन इंजीनियङ्क्षरग सेवा में चयनित होकर सुनहरा करियर। परंतु, कुछ अलग करने की ललक में नौकरी छोड़कर गांव आ गए। यहां दो साल पहले परंपरागत खेतीबाड़ी में जैतून (आलिव) की बागवानी का ऐसा बीज बोया कि इसके पौधों से बीहड़ के छह सौ किसानों की जिंदगी महक उठी है। बागवानी से आय की शुरुआत इस वर्ष के अक्टूबर में होगी। फिर अतिरिक्त आय का सिलसिला कई वर्षों तक चलता रहेगा।
आगरा से जाते समय बाह से दो किलोमीटर पहले चंबल सफारी लाज है। इसी के पास है गांव जरार। वैसे तो यहां पर सरसों की लहलहाती फसल है। वर्ष में अन्य फसलें भी होती हैं। मगर, इस क्षेत्र में छह एकड़ जमीन में जगह-जगह जैतून के पौधे भी लहलहाते नजर आएंगे। ये पौधे लाज के संचालक आर पी सिंह की कोशिश का एक उदाहरण है। आइआइटी से बीटेक के बाद आरपी सिंह ने इंडियन इंजीनियरिंग सेवा की परीक्षा पास करने के बाद नौकरी की। वर्ष 1997 में नौकरी छोड़ दी। वर्ष 1999 में गांव आ गए। आरपी सिंह बताते हैं कि किसानों को पारंपरिक खेती देखकर कई बार मन मायूस हुआ। कभी इतना आलू उत्पादित होता कि किसान उसे सड़क पर फेंकते थे, तो कभी इतना महंगा कि आम परिवार के लिए खरीदना मुश्किल। कुछ नया करने के मकसद से उन्होंने जैतून की खेती करने का निर्णय लिया।
आरपी सिंह बताते हैं कि चंबल एग्रीटेक इनक्यूवेटर नाम से संस्था बनाई। इसमें आसपास के 15 गांवों के 610 किसानों को जोड़ा। इन किसानों से अनुबंध पर खेत लिया। इस जमीन सहित वर्ष 2020 में कुल छह एकड़ भूमि जुटाई। इजरायल से खासतौर पर बीज मंगाकर छह एकड़ जमीन में बोया। पौधे एक से तीन फीट ऊंचे तक हो गए हैं। इस वर्ष भी छह एकड़ और जमीन में जैतून के बीज बोये हैं। जैतून के पौधे में पत्तियां तो तुरंत निकलना शुरू हो जाती है जबकि फल चार साल में आता है। पत्तियों की चाय का स्वाद अलग रहता है। बाजार में इसकी कीमत 13 हजार रुपये प्रति किग्रा है। एक बीघा में बागवानी पर चार से पांच हजार की लागत आई। आय प्रति पौधा एक हजार रुपये तक होगी।