आगरा
आजादी के बाद देश से लेकर प्रदेश तक तीन दशक से अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस आज अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही है। आगरा में उसके सामने ढाई दशक से अपना खाता खोलने की चुनौती बरकरार है। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन भी कांग्रेस की नैया पार नहीं लगा पाया था। उसके प्रत्याशी तीसरे स्थान से आगे नहीं बढ़ सके थे।
कांग्रेस प्रत्याशी ने आगरा में अंतिम बार वर्ष 1996 में खेरागढ़ विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। तब कांग्रेस के मंडलेश्वर सिंह ने भाजपा के जगदीशचंद्र को 1193 वोटों से शिकस्त दी थी। इसके बाद कांग्रेस जिले में कभी फाइट में नहीं रही। वर्ष 2017 में कांग्रेस और सपा का गठबंधन हुआ। तब कांग्रेस के खाते में जिले की तीन सीटें आगरा दक्षिण, आगरा ग्रामीण और खेरागढ़ विधानसभा सीटें आईं। आगरा दक्षिण से उद्यमी नजीर अहमद, आगरा ग्रामीण से वर्तमान प्रदेश उपाध्यक्ष उपेंद्र सिंह और खेरागढ़ से कुसुमलता दीक्षित को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। सपा से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी मुख्य मुकाबले में नहीं रहे थे। तीनों को तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा था। अब पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव और उप्र प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस जोश से लबरेज नजर आ रही है। पार्टी ने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं, लेकिन आगरा में प्रियंका गांधी वाड्रा ने वाल्मीकि समाज से सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाने को एक नाम मांगकर बड़ा दाव खेला है। कांग्रेस के लिए इस बार रण आसान नहीं होना है। पार्टी बिना किसी गठबंधन के चुनाव मैदान में उतर रही है, ऐसे में देखना होगा कि विधानसभा चुनाव में वो पिछला प्रदर्शन दोहरा भी पाती है या नहीं। कांग्रेस जिलाध्यक्ष राघवेंद्र सिंह मीनू ने कहा कि यह बात सही है कि 25 वर्षों से आगरा में कांग्रेस नहीं जीती है। पहले हमारा संगठन इतना मजबूत नहीं था, जितना कि अब है। प्रतिज्ञा यात्रा और मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं कार्यक्रम को जनता का समर्थन मिला है। इस बार बदलाव आएगा।