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भारत रत्न किसे कहेंगे आप ?

1978 की हकीकत:-
एक बार J R D TATA फ्लाइट में बैठे थे उसके बगल में दिलीप कुमार बैठे थे। दिलीप कुमार से रहा नहीं गया उन्होंने अपना परिचय दिया मैं नामी filmstar हूं आप मेरी film देखी होगी।
JRD TATA ने जवाब दिया- नहीं, कौन दिलीप कुमार
उस वक़्त दिलीप कुमार की बेजती हो गई। सभीNews paper में खबर आई थी।
आज देश के अनमोल रत्न रतनजी टाटा पर पूरे देश को गर्व है।
उसके जीवन की तीन घटनाएं जो मैंने पढ़ी है आपको बताता हूं।
एक बार अमिताभ के बगल की सीट पर फ्लाइट में सफर कर रहे थे अमिताभ ने पूछा, आप फिल्म देखते हैं, इन्होंने कहा समय नहीं मिलता, अमिताभ ने बताया कि वह फिल्म स्टार है। इन्होंने कहा बहुत खुशी हुई आपसे मिलकर। अमिताभ बहुत प्रसन्न थे। अपना फिल्मस्टार वाला एटिट्यूड दिखा रहे थे। जब एयरपोर्ट पर उतरे तो अमिताभ ने पूछा कि आपने परिचय नहीं दिया तो इन्होंने कहा टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री के चेयरमैन हूं रतन टाटा नाम है। अमिताभ को काटो तो खून नही।
दूसरी घटना मुंबई हमले की बाद की है। पाकिस्तान ने टाटा सूमो की हजारों गाड़ियों का आर्डर दिए था। जो मुंबई हमले के बाद टाटा ने डिलीवरी को कैंसिल कर दी व ये कहकर गाड़ियां देने से मना कर दिया की मैं उस देश को गाड़ी नहीं दे सकता जो गाड़ी मेरे देश के खिलाफ इस्तेमाल करे।
तीसरी घटना मुंबई हमले के बाद की है मुंबई ताज होटल की मॉडिफिकेशन का था पाकिस्तान के एक पार्टी इस काम के लिए इनसे मिलने आई। इन्होंने मिलने से मना कर दिया। पार्टी ने दिल्ली जाकर आनन्द शर्मा से सिफारिश करवाई। शर्मा ने पार्टी की तारीफ करते हुए कहा इन्हें काम दीजिए ये अच्छा काम करेंगे। रतन टाटा का जवाब था- You may be shameless,I am not (आप बेशर्म हो सकते हैं, मैं नहीं!)
प्रधानमंत्री के आग्रह पर वो व्यक्ति दीया लिये खड़ा है
यही वो व्यक्ति है जिन्होंने कोरोना फंड में1500 करोड़ दान किए हैं और कहा है जरूरत पड़ने पर अपनी पूरी संपत्ति देश के लिए दे सकता है।
ऐसा देश भक्त महान पुरुष, कर्मयोद्धा को करबद्ध नमन है। ये है हमारे देश के असली हीरो। आज के युवा को इन्हें अपना आदर्श मानना चाहिए और इन पर गौरव करना चाहिए , न कि टुच्चे नेताओं को हीरो मानकर उनके पीछे चक्कर लगाना चाहिए।
मेरे नजर में भारत रत्न का हकदार ये असली रत्न, ये कर्मयोद्धा है जिसने भारत की औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व किया और उत्पादों की गुणवत्ता के सदैव मानक स्थापित किए।
जय हिन्द! वन्देमातरम!.
क्रेडिट: जिम्मी गुप्ता
रतन टाटा का जीवन काल और उनकी सफलता पूर्ण निर्णय 

1971 में रतन टाटा को राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लिमिटेड (नेल्को) का डाईरेक्टर-इन-चार्ज नियुक्त किया गया, एक कंपनी जो कि सख्त वित्तीय कठिनाई की स्थिति में थी। रतन ने सुझाव दिया कि कम्पनी को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के बजाय उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास में निवेश करना चाहिए जेआरडी नेल्को के ऐतिहासिक वित्तीय प्रदर्शन की वजह से अनिच्छुक थे, क्यों कि इसने पहले कभी नियमित रूप से लाभांश का भुगतान नहीं किया था। इसके अलावा, जब रतन ने कार्य भार संभाला, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स नेल्को की बाज़ार में हिस्सेदारी २% थी और घाटा बिक्री का ४०% था। फिर भी, जेआरडी ने रतन के सुझाव का अनुसरण किया।

1972 से 1975 तक, अंततः नेल्को ने अपनी बाज़ार में हिस्सेदारी २०% तक बढ़ा ली और अपना घाटा भी पूरा कर लिया। लेकिन 1975 में, भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपात स्थिति घोषित कर दी, जिसकी वजह से आर्थिक मंदी आ गई।

इसके बाद 1977 में यूनियन की समस्यायें हुईं, इसलिए मांग के बढ़ जाने पर भी उत्पादन में सुधार नहीं हो पाया। अंततः, टाटा ने यूनियन की हड़ताल का सामना किया, सात माह के लिए तालाबंदी कर दी गई। रतन ने हमेशा नेल्को की मौलिक दृढ़ता में विश्वास रखा, लेकिन उद्यम आगे और न रह सका।

1977 में रतन को Empress Mills सोंपा गया, यह टाटा नियंत्रित कपड़ा मिल थी। जब उन्होंने कम्पनी का कार्य भार संभाला, यह टाटा समुह की बीमार इकाइयों में से एक थी। रतन ने इसे संभाला और यहाँ तक की एक लाभांश की घोषणा कर दी। चूँकि कम श्रम गहन उद्यमों की प्रतियोगिता ने इम्प्रेस जैसी कई उन कंपनियों को अलाभकारी बना दिया, जिनकी श्रमिक संख्या बहुत ज्यादा थी और जिन्होंने आधुनिकीकरण पर बहुत कम खर्च किया था रतन के आग्रह पर, कुछ निवेश किया गया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। चूंकि मोटे और मध्यम सूती कपड़े के लिए बाजार प्रतिकूल था (जो कि एम्प्रेस का कुल उत्पादन था), एम्प्रेस को भारी नुकसान होने लगा। बॉम्बे हाउस, टाटा मुख्यालय, अन्य ग्रुप कंपनिओं से फंड को हटाकर ऐसे उपक्रम में लगाने का इच्छुक नहीं था, जिसे लंबे समय तक देखभाल की आवश्यकता हो। इसलिए, कुछ टाटा निर्देशकों, मुख्यतः नानी पालकीवाला ने ये फैसला लिया कि टाटा को मिल समाप्त कर देनी चाहिए, जिसे अंत में 1986 में बंद कर दिया गया। रतन इस फैसले से बेहद निराश थे और बाद में एक दैनिक समाचार पत्र के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने दावा किया कि एम्प्रेस को मिल जारी रखने के लिए सिर्फ़ ५० लाख रुपये की जरुरत थी।

वर्ष 1981 में, रतन टाटा इंडस्ट्री््ज और समूह की अन्य होल्डिंग कंपनियों के अध्यक्ष बनाए गए, जहाँ वे समूह के कार्यनीतिक विचार समूह को रूपांतरित करने के लिए उत्तरदायी तथा उच्च प्रौद्योगिकी व्यापारों में नए उद्यमों के प्रवर्तक थे।

1991 में उन्होंने जेआरडी से ग्रुप चेयर मेन का कार्य भार संभाला. टाटा ने पुराने गार्डों को बहार निकाल दिया और युवा प्रबंधकों को जिम्मेदारियां दी गयीं। तब से लेकर, उन्होंने, टाटा ग्रुप के आकार को ही बदल दिया है, जो आज भारतीय शेयर बाजार में किसी भी अन्य व्यापारिक उद्यम से अधिक बाजार पूँजी रखता है।

रतन के मार्गदर्शन में, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेस सार्वजनिक निगम बनी और टाटा मोटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई। 1998 में टाटा मोटर्स ने उनके संकल्पित टाटा इंडिका को बाजार में उतारा.

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31 जनवरी २००७ को, रतन टाटा की अध्यक्षता में, टाटा संस ने कोरस समूह को सफलतापूर्वक अधिग्रहित किया, जो एक एंग्लो-डच एल्यूमीनियम और इस्पात निर्माता है। इस अधिग्रहण के साथ रतन टाटा भारतीय व्यापार जगत में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गये। इस विलय के फलस्वरुप दुनिया को पांचवां सबसे बङा इस्पात उत्पादक संस्थान मिला।

रतन टाटा का सच हुआ सपना उनकी टाटा नैनो कार २००८

रतन टाटा का सपना था कि १,००,००० रु की लागत की कार बनायी जाए. (१९९८ : करीब .

अमेरिकी डॉलर २,२००; आज अमेरिका). नई दिल्ली में ऑटो एक्सपो में 10 जनवरी, २००८ को इस कार का उदघाटन कर के उन्होंने अपने सपने को पूर्ण किया। टाटा नैनो के तीन मॉडलों की घोषणा की गई और रतन टाटा ने सिर्फ़ १ लाख रूपये की कीमत की कार बाजार को देने का वादा पूरा किया, साथ ही इस कीमत पर कार उपल्बध कराने के अपने वादे का हवाला देते हुये कहा “वादा एक वादा है”

26 मार्च २००८ को रतन टाटा के अधीन टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से जगुआर और लैंड रोवर को खरीद लिया। ब्रिटिश विलासिता की प्रतीक, जगुआर और लैंड रोवर (Land Rover) १.१५ अरब पाउंड ($ २.३ अरब), में खरीदी गई।

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