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जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते, मंच की तरह मौत पर भी चौंका गए राहत इंदौरी

 

एक अच्छा शायर उसे माना जाता है जिसके शे’र सुनने वाले को छू लें। यह छूना, रुलाना भी हो सकता है, हंसाना भी हो सकता है और गहरी उदासी में भेजना भी हो सकता है। एक शे’र में दो मिसरे या पंक्तियां होती हैं। मंजा हुआ शायर वह होता है, जिसके पहले मिसरे को सुन कर यह आभास कतई न हो कि वह दूसरे मिसरे में क्या कहने वाला है। कौतूहल! यानी सामने की शायरी न हो। दूसरे शब्दों में कहें तो दूसरा मिसरा पूरा होते ही शे’र मुकम्मल हो। अर्थ विस्फोट के कारण रहस्य से पर्दा उठे और लोग वाह-वाह कह उठें या आह भर दें। जैसे वह शायरी में चौंकाते रहे हैं, वैसे ही उन्होंने इस तरह अलविदा कह कर चौंकाया है। पहले कोरोना पॉजिटिव होने का ट्वीट, फिर अचानक हृदयाघात और इस तरह इंतकाल फर्माना। जैसे राहत ने आज के लिए ही लिख रखा हो :

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हाथ खाली हैं तिरे शहर से जाते जाते

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जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते

क्या नहीं था राहत के पास? आवाज थी, अंदाज था और थी शायरी। इसके साथ ही सुनने वालों की बेहद लंबी फेहरिस्त। मंच पर इतने वर्षों तक बने रहना आसान नहीं होता। कुछ शायर मशहूर होते हैं, कुछ मकबूल होते हैं। राहत इंदौरी के हिस्से में ये दोनों विशेषण आए। दोनों का अर्थ लोकप्रियता के साथ ही जुड़ा है।

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राहत की गजलों के विशेष वही थे जो आम तौर पर होते हैं। इश्क, मोहब्बत, समाज, सियासत और अध्यात्म वगैरह। लेकिन कुछ चीजें थी जो उन्हें राहत बनाती थी। एक थी, आमतौर पर सरल शब्दों का प्रयोग और दूसरी खासियत थी उनका शे’र को इस तरह बार-बार सुनाना कि श्रोता के सामने शे’र के सारे रंग खुल जाएं। यही उनकी लोकप्रियता का कारण भी था।

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