राजहठ के आगे नतमस्तक हुई धर्मसत्ता
भाड़ मीडिया ने मोदी की तुलना में भगवान राम को किया बौना
महूर्त औऱ पात्रता का यक्ष प्रश्न आस्थावानों को मथता रहेगा
गोदी मीडिया ने पार की चाटूकारिता की सारी हदें
मेहनत करे मुर्गा अंडा खायें फ़क़ीर वाली कहावत 5 अगस्त को साकते धाम में भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण के लिए दुबारा किये गए भूमि पूजन सम्पन्न होते ही फलीभूत हो गई ।
हिन्दू शास्त्रों में देवरात्री और पंचक में हर तरह के शुभ कार्य करना वर्जित किया गया है साथ ही पत्नी को त्याग चुके पूर्ण खंडित व्यक्ति को व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक अनुष्ठान करने के लिए अपात्र माना गया है । इस बात को धर्म में आस्था रखने वाला निरक्षर भी जानता और मानता है । इसके बावजूद भी कुछ सत्ता पोषित धर्माचार्यों द्वारा चल रही देवरात्री के बीच भाद्रमास कृष्ण पक्ष की द्वितीया को पंचक लगे होने पर भी भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण का शिलान्यास कराया जाना इस बात को सिद्ध करता है कि राजसत्ता के सामने धर्मसत्ता ने घुटने टेक दिए हैं । इस कृत्य से धर्माचार्यों पर भी सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है कि क्या धर्माचरण केवल धर्मभीरू जनता के लिए ही हैं । समर्थ के लिए अधर्माचरण भी धर्म बन जाता है और धर्मध्वजा उठाने वाले नतमस्तकीय होकर हांजू – हांजू करते रहते हैं ।*
*मान्यता है कि जिस प्रकार देश संविधान से चलेगा उसी प्रकार धर्म वेद, उपनिषद, संहिताओं, पुराणों, मनुस्मृति, ब्राम्हण ग्रन्थों से चलेगा । ज्योतिष शास्त्र, वास्तु शास्त्र का सबसे बड़ा ग्रन्थ भृगु संहिता को माना गया है उसमें भी पंचक को अशुभ महूर्त माना गया है । इसी तरह गरुण पुराण, हरिवंश पुराण, मरीचि संहिता, आचार्य संहिता, समरांगण सूत्रधार में भी भाद्रपद तथा पंचक में शुभ कार्य वर्जित बताये गये हैं । इन्ही कारणोंवश द्विपीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती तथा साध्वी कुलेसरा देवी सहित अन्य धर्माचार्यों, आचार्यों ने 5 अगस्त को किये जाने वाले भूमिपूजन पर आपत्ति जताई थी मगर हठी राजसत्ता ने धर्मसत्ता की छाती पर चढ़कर अपनी मनमानी कर डाली ।*
*द्विपीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने देश के गृहमंत्री पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि मंदिर निर्माण का मार्ग पक्षकारों, अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों ने प्रशस्त किया है न कि सरकार ने । उनका तो यह कहना है कि सरकार, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद ने मिलकर अयोध्या में एक नई मस्जिद के निर्माण का मार्ग जरूर प्रशस्त किया है ।*
*स्वरूपानंद सरस्वती के अनुसार अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के अधिवक्ता परमेश्वर नाथ मिश्र एवं उनकी सहयोगी अधिवक्ता सुश्री रंजना अग्निहोत्री की जिरह का ही परिणाम है कि विवादास्पद ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे की भूमि को श्री राम जन्मभूमि घोषित किया गया । अन्य पक्षकारों के अधिवक्ताओं की कमज़ोर पैरवी के कारण ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में वाद भूमि को तीन हिस्सों में बांटा था ।*
*शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, साध्वी कुलेसरा देवी सहित कई धर्माचार्यों, आचार्यों ने हिंदुओं के पवित्र तीर्थ क्षेत्र में आयोजित किये गए धार्मिक समारोह में मुसलमानों को आमंत्रित किए जाने की निंदा करते हुए इसे तीर्थ स्थल की मर्यादा भंग तथा हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का बलात हनन करार दिया है । इनके अनुसार जब श्री जगन्नाथ पुरी, श्री बद्रीनाथ धाम, श्री विश्वनाथ मंदिर, श्री गुरुवायुर मंदिर, श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, श्री अयप्पा स्वामी मंदिर, श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में मुस्लिमों का प्रवेश निषेध है तो फिर श्री राम जन्मभूमि के धार्मिक समारोह में भारत सरकार द्वारा निर्मित न्यास ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 एवं 26 से प्राप्त हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का शासन के जोर पर हनन क्यों किया गया ? इनका कहना है कि वे राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति, मुस्लिम एवं अन्य धर्ममतावलम्बियों के तुष्टिकरण के लिए श्री राम मंदिर का इस्तेमाल नहीं होने देंगे । जरूरत पड़ने पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की बात भी कही है ।*
*5 अगस्त को मीडिया ने भी चापलूसी, चाटूकारिता की सारी हदें पार की । मोदी द्वारा साष्टांग दण्डवत करने को इस तरह प्रस्तुत किया गया जैसे इसके पहले कभी किसी ने भगवान को साष्टांग दण्डवत किया ही नहीं । जबकि मोदी ने पैरों से मोजे तक नहीं उतार कर किसी न किसी रूप में भगवान का अपमान ही किया है । कुछ ने बाल स्वरूप राम को मोदी की उंगली पकड़े जाते हुए फ़ोटो दिखाकर तथा मोदी के हेलीकॉप्टर की पुष्पक विमान से तुलना कर नरेन्द्र मोदी को भगवान राम से ऊंचा दर्जा दे दिया ।*
*कुल मिलाकर भले ही श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू होने जा रहा है मगर वाद – विवाद, आरोप – प्रत्यारोप का दौर खत्म होने वाला नहीं है ।