आगरा
ताजमहल का बंद तहखाना सुर्खियों में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर करने वाले अयोध्या निवासी डा. रजनीश सिंह ने तहखाना में कमरे होने का हवाला देते हुए उन्हें खुलवाने को याचिका दायर की है। इस मामले में नया मोड़ सामने आया है। एएसआइ से सेवानिवृत्त अधिकारी का दावा है कि उन्होंने कमरों जैसा कोई निर्माण नहीं देखा। वहां गलियारा और फाउंडेशन पिलर हैं।
एएएसआइ के आगरा सर्किल से उपाधीक्षण पुरातत्व अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए एमसी शर्मा बताते हैं वह साढ़े चार वर्ष तक ताजमहल के प्रभारी और नौ वर्ष तक इंजीनियर रहे। ताजमहल के बेसमेंट में नीचे गलियारा और ब्लाक टाइप के फाउंडेशन पिलर हैं। इनका संरक्षण सीबीआरआइ की रिपोर्ट आने के बाद कराया गया था। काफी मजदूरों ने काम किया था।
पता नहीं, कमरों की चर्चा कहां से आ गई। उन्होंने ऐसा निर्माण वहां नहीं देखा है। उन्होंने बताया कि नदी व समुद्र किनारे बनने वाले भवनों व पुलों के निर्माण में पाइल्स (वैल) फाउंडेशन का इस्तेमाल होता है। आगरा में यमुना किनारे बने एत्माद्दौला, रामबाग, मेहताब बाग समेत अन्य स्मारकों में पाइल्स फाउंडेशन का ही इस्तेमाल हुआ था। वहीं, एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन का कहना है कि यमुना किनारे ताजमहल के दो दरवाजे दशहरा घाट व बसई घाट की बुर्जियों के नजदीक खुले हुए थे। यहां से सीढ़ियां ऊपर जाती थीं। दोनों बुर्जियों के बीच गलियारा है। वहां पिलर और निच हैं। कमरों जैसा अस्तित्व नहीं है। स्मारकों के हिस्सों को बंद किए जाने से नए-नए किस्से गढ़े जा रहे हैं। इसके लिए एएसआइ ही जिम्मेदार है, उसने संरक्षण व सुरक्षा के नाम पर स्मारकों को बंद कर रखा है। बंद हिस्सों को खोल देना चाहिए।