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Dussehra 2025: रावण का पुतला नहीं, मन का अहंकार जलाना है दशहरा की असली सीख

दशहरा के दिन बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। गांव-कस्बे हों या शहर, लोग झुंड बनाकर दशहरा का मेला देखने जाते हैं। अब तो बच्चे खुद भी इस दिन मोहल्ले-मोहल्ले रावण का पुतलादहन करने लगे हैं। इस दिन रामलीला में दर्शकों की भीड़ बहुत ज्यादा होती है। इनमें भी स्वजन अथवा मित्रमंडली के साथ आए बच्चों-किशोरों की संख्या सर्वाधिक होती है। इधर मंच पर रावण की भूमिका निभा रहा कलाकार गिरता है, उधर मैदान में खड़े रावण के पुतले में आग लगा दी जाती है। आतिशबाजी और पुतलादहन के बाद सभी घर लौटने लगते हैं।

हर जगह हैं राम और रावण

दशहरा अथवा विजयदशमी को ‘असत्य पर सत्य की जीत’ अथवा ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ का पर्व कहा जाता है। मगर कभी सोचा है कि इसका अर्थ क्या है? रामलीला में ही नहीं, जीवन के हर अंश में नायक और खलनायक, अच्छा आदमी और बुरा आदमी पाएंगे। सिनेमा, स्कूल, नौकरी, व्यापार, परिवार, देश, समाज और दुनिया, हर जगह दोनों तरह के लोग हैं। ऐसा लगता जरूर है कि दुनिया में बुरे आदमी की मौज रहती है, सोने की लंका उसी की है, मगर सच ये है कि या तो एक दिन उसका अंत होता है अथवा पोल खुल जाती है। इसलिए बच्चों और किशोरों के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वे नायक कैसे बनें, ऐसा क्या करें कि जीवन में उनकी जय-जयकार हो, न कि पुतले जलाए जाएं।

राम से जानें सक्सेस मंत्र

बच्चों और किशोरों का प्रिय पर्व विजयदशमी इस समझदारी के लिए सबसे बड़ा संकेत है। श्रीरामचरितमानस में श्रीराम-रावण युद्ध से ठीक पहले का प्रसंग पढ़ना ही इसके लिए पर्याप्त है कि वे जीवन की रामलीला के नायक कैसे बनें। कैसे संस्कार और स्वभाव उन्हें जीवन के किसी भी युद्ध में विजेता बनाएंगे। श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में गोस्वामी तुलसीदास वर्णन करते हैं कि राम-रावण का आमने-सामने युद्ध प्रारंभ होने से पहले विभीषण को चिंता हुई कि रामजी सभी साधनों से संपन्न रावण का मुकाबला कैसे करेंगे? रावण तो रथ पर सवार है और मेरे रामजी पैदल हैं, नंगे पांव हैं। यह बराबरी का मुकाबला ही नहीं है, तो वे कैसे जीतेंगे? राम-रावण युद्ध जैसी यह परिस्थिति हर व्यक्ति के जीवन में आती है, कई बार लगता है कि क्षमता से बड़ा काम, प्रतियोगिता, परिस्थिति अथवा लक्ष्य सामने है, तो जीत कैसे होगी? जो आपसे बहुत प्रेम करते हैं, वो कई बार इसको लेकर चिंतित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आप उन्हें-और सबसे बढ़कर खुद को-कैसे भरोसा दिला सकते हैं कि जीत आपकी ही होगी। राम-रावण युद्ध से पूर्व श्रीराम खुद इसका सक्सेस मंत्र आपके हाथ में थमा रहे हैं, मगर इस पर अमल तो आपको ही करना होगा।

दैनिक अभ्यास बने अच्छा आचरण

रास्ता बहुत सरल है, जिस प्रकार रोज होमवर्क करने से गणित के सवाल आसान लगने लगते हैं, उसी तरह अच्छे आचरण को दैनिक अभ्यास का अंग बनाने से हर मुश्किल आसान होने लगती है। श्रीरामजी विभीषण से कहते हैं कि विजय रथ स्वयं पर विश्वास (शौर्य), धीरज (धैर्य), सत्य और सदाचार, बल, विवेक, इंद्रियों का वश में होना (दम), परोपकार, क्षमा, दया और समता जैसे गुणों से बना है। भजन (हर परिस्थिति में ईश्वर का स्मरण) इसको चलाने वाला सारथी है। चीजों से मोह न रखना (वैराग्य), संतोष, दान, बुद्धि और अपने विषय में निपुण होना इसमें रखे हुए अस्त्र-शस्त्र हैं। पाप-रहित, इधर-उधर न भटकने वाला और नियमों का पालन करने वाला मन, स्वस्थ-संतुलित शरीर तरकश व तीर हैं। गुरु का पूजन हर वार को झेलने वाला अभेद कवच है। इस प्रकार वर्णन करते हुए अंत में श्रीराम कहते हैं कि इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। अब तो आप समझ गए होंगे कि रावण के सामने दृढ़ता से खड़े श्रीराम जिस रथ की बात कर रहे हैं, वह और कुछ नहीं आपका अपना शरीर और व्यक्तित्व है, जिसे अच्छे संस्कार देकर आप इतना मजबूत बना सकते हैं कि कोई भी परिस्थिति हो, जीत आपकी ही होगी।

वह रथ जो देगा विजय

मात्र पांच चौपाइयों और एक दोहे, मतलब बमुश्किल दो मिनट के इस पाठ में प्रभु राम विभीषण को जो बताते हैं, वह बच्चों और किशोरों के जीवन भर काम आने वाली है। अभी से उन पर जैसी छाप पड़ेगी, वे जीवन भर के लिए वैसे ही अच्छे या बुरे आचरण वाले बनेंगे। अच्छाई का अर्थ है आत्मविश्वास और बुराई का अर्थ है अहंकार। ‘मैं अच्छा हूं’ यह सोच एक बात है और ‘मैं ही अच्छा हूं’ यह इसके बिल्कुल विपरीत है। कई बार एक शब्द की घट-बढ़ ही आपको राम या रावण बना देती है। जब विभीषण ने प्रभु राम से चिंता जताई कि आप बिना रथ के रावण पर विजय कैसे प्राप्त कर पाएंगे, तो श्रीराम ने कहा चिंता मत करो मित्र, जिस रथ से युद्ध में जीत होती है, वह ‘विजय रथ’ खरीदा-बनवाया नहीं जाता बल्कि अच्छे आचरण से प्राप्त होता है और जिसके पास ऐसा रथ हो, वह समस्त संसार जीत सकता है।

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