आगरा
आदिदेव महादेव की आराधना का महापर्व शिवरात्रि मंगलवार को श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। घरों से लेकर मंदिरों तक महाशिवरात्रि की रौनक छाई है। शिव मंदिरों में सुबह से दुग्धाभिषेक और जलाभिषेक को श्रद्धालुओं की कतारें लगीं। ऊं नम: शिवाय के साथ बोल बम और हर-हर महादेव के जयकारे लगे।। विधि-विधानपूर्वक भगवान शिव का पूजन कर श्रद्धालुअों ने व्रत धारण किया। शाम को मंदिरों में भगवान शिव के आकर्षक शृंगार के साथ फूलबंगले के दर्शन होंगे। रात में जागरण और आरती होंगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। शिव पुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। मंगलवार को सुबह चार बजे ही मंदिरों के पट खोल दिए। मंगला आरती की गई। इसके बाद श्रद्धालुओं ने भगवान शिव पर कांवड़ चढ़ाईं। राजेश्वर महादेव मंदिर व कैलाश महादेव मंदिर में देर रात ही श्रद्धालु कांवड़ लेकर पहुंच गए थे। सुबह आठ बजे के बाद मंदिरों में दर्शन और जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक को लाइनें लगीं। कैलाश, बल्केश्वर, मन:कामेश्वर, रावली, राजेश्वर, पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर में भक्तों को लाइनों में लगकर इंतजार करना पड़ा। कई मंदिरों में रुद्राभिषेक किया गया। पंं. चंद्रेश कौशिक ने बताया कि मंगलवार को महाशिवरात्रि है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कष्टों का निवारण होता है। व्यक्ति काम, क्रोध व लोभ के बंधन से मुक्त होता है।
महाशिवरात्रि सोमवार अर्द्धरात्रि 3:16 बजे से शुरू होकर दो मार्च को सुबह 10 बजे तक रहेगी। एक मार्च को शाम 6:22 बजे से रात 12:33 बजे तक पूजन का शुभ मुहूर्त रहेगा। निशीथ काल में पूजा मुहूर्त एक मार्च की रात 11:49 से 12:38 बजे तक रहेगा। महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त दो मार्च को सुबह 6:26 के बाद रहेगा।
सबसे पहले शिवलिंग को चंदन का लेप लगाकर पंचामृत से स्नान कराएं। दीप और कपूर जलाएं। लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। आसपास कोई शिव मंदिर नहीं हो तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजन करें। शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या ऊं नम: शिवाय का जाप करें। महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का विधान है। शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन निशीथ काल में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है।
बल्केश्वर मंदिर की जगह कभी बिल्व का घना जंगल था। 600 वर्ष पूर्व जब यहां जंगल कटा तो शिवलिंग दिखा। बिल्व पत्र के जंगल की वजह से इसे बिल्वकेश्वर मंदिर कहा गया। महंत सुनील कांत नागर ने बताया कि महाशिवरात्रि पर सुबह मंदिर में बाबा बल्केश्वर नाथ का दुग्धाभिषेक, जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की जाएगी। शाम को भव्य फूलबंगला आैर 56 भोग के दर्शन होंगे। शाम सात बजे से आचार्य अरुण पंड्या द्वारा रुद्राभिषेक किया जाएगा। रात में चार महाआरती व चार शृंगार रात नौ बजे, 12 बजे, अर्द्धरात्रि तीन बजे व सुबह छह बजे होंगे।