एक नन्हीं सी परी जैसे जैसे बढ़ने लगी ,
उसकी ख्वांबों की उड़ान उतनी ही बढ़ने लगी ,
वो उड़ान को जितना बढ़ाने लगी ,
उसकी मंज़िल से दूरी उतनी ही बढ़ने लगी ,
पापा की प्यारी थी ,भाई की दुलारी थी ,
मगर अपने ही सपनों की मुसाफिर वो बन ना सकी ,
वो अपने जो हर मुसीबत में हाथ थामे रहते थे ,
वही हाथ उसकी उड़ान के लिए जंजीर बनने लगे ।।
दुनिया की भीड़ में खुद को अकेला समझने लगी थी वो ,
अपनों के बीच में भी खुद को पराया कहने लगी थी वो ,
डर था पापा को कही बेटी किसीकी हवस की शिकार ना हो ,
भाई ने सोचा कभी इसकी आंखों में आसूंओं का अंबार ना हो,।
लेकिन उस बेटी की आंखों में वो अब गुनहगार थे ,,
वो उसकी उड़ान में बन रहे बंदिश के हकदार थे ।
वो जिन्हे कमजोरी समझ रहे थे ,
वही तो बेटी के हथियार थे ,
वो जिन्हे देनी चाहिए लड़ने की हिम्मत उसको ,
वो तोड़ रहे उसे दिन रात थे ,
फिक्र जायज़ थी उनकी वो घर की मुस्कुराहट थी उनकी ,,
मगर ये भी तो ठीक ना था ,वो करे अपने सपनों से समझोते
ये भी तो उसको गवारा ना था ,
सारी बंदिशों को तोड़ वो बस उड़ना चाहती थी ,
आसुओं को कमजोरी नहीं ताक़त बनाना चाहती थी ,
दरिंदे हर मोड़ पर है पता था उसको
लेकिन वो उनसे डरना नहीं उन्हें खत्म करना चाहती थी
वो कुछ बनाना चाहती थी
आखिर में अड़चनों ने उसको तोड़ दिया था
वो सवालों के घेरे में खुद को अक्सर पाती थी।।
घुट घुट कर जीती वो अब हर दिन
क्युकी उसकी उड़ान अभी अधूरी थी।
वो एक लड़की थी उसकी इतनी कहानी थी
एक नन्हीं सी परी जैसे जैसे बढ़ने लगी
मोनिका धनगर