हिंदी कविता में मंगलेश डबराल की पहचान

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दिल्ली जाने से पहले जब लघु साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं को पढ़ना शुरू किया तो मंगलेश डबराल से भी परिचय हुआ और उनकी कविताओं में समय और समाज के स्पंदन के बीच जीवन – यथार्थ का बयान करने वाले काव्य बिंबों ने उस समय सबका ध्यान आकृष्ट किया था . उन्हें आठोत्तरी दशक का कवि कहा जाता है और अरुण कमल , उदय प्रकाश के अलावा राजेश जोशी के साथ उन्हें इस दौर के उल्लेखनीय कवियों में माना जाता है . अपने काव्य संग्रह ‘ घर का रास्ता ‘ से समकालीन हिंदी कविता में खुद को उजागर करने वाले मंगलेश डबराल को काव्य लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया . मंगलेश डबराल जनसत्ता के फीचर संपादक के पद पर भी कार्यरत रहे और बाद में सहारा समय साप्ताहिक पत्रिका के भी संपादक बने . जनसत्ता का दफ्तर जब नोयडा की जगह दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग में स्थित एक्सप्रेस बिल्डिंग में हुआ करता था तो गोरख पांडे के बारे में अपने किसी टेलिविजन परिचर्चा में उन्हें भी आमंत्रित करने मैं गया था और उनसे भेंट हुई थी . मंगलेश डबराल सिनेमा से भी लगाव रखते थे और उन्हें दिल्ली की साहित्यिक संगोष्ठियों के अलावा फिल्म समारोहों में अक्सर देखा करता था . दिल्ली से 2013 में लौट आने के बाद बिहार के लखीसराय के बालिका विद्यापीठ में जब मैं हिंदी विषय का शिक्षक बन गया तो दसवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में उनकी कविता संगतकार को भी मुझे पढ़ाना था तो किसी दिन शाम के बाद इस कविता के रचना संदर्भ पर उनसे बातचीत हूई थी और काफी देर तक इस कविता के बारे में उनसे बातचीत होती रही . मंगलेश डबराल की इस कविता में व्यष्टि और समष्टि समाज के इन दो सोपानों के बीच मनुष्य के जीवन के यथार्थ को निकट से देखने जानने की चेष्टा समाहित है . नवादा के डीपीएस में कुछ साल पहले जब मैं पढ़ा रहा था तो उन दिनों दैनिक जागरण में उनका इंटरव्यू प्रकाशित हुआ था और फोन पर मुझे भी उन्होंने इंटरव्यू देने की बात मुझे कही थी लेकिन दो महीने इसकी याद दिलाने पर उन्होंने समय की कमी का जिक्र किया था . खैर . . .

मंगलेश डबराल की कविताएँ समकालीन हिंदी कविता की भाषा इसके शिल्प और संवेदना की रचनात्मकता को कई स्तरों पर रेखांकित करती हैं और व्यापक संवाद के साथ गहन चिंतन की प्रवृत्ति इनके काव्य लेखन की प्रमुख विशिष्टता मानी जाती है . जीवन के सामयिक संकटापन्न संदर्भों को मंगलेश डबराल की कविताएँ खास कर जीवन के प्रामाणिक पाठ की तरह से उजागर करती हैं . महानगरीय परिवेश में तमाम तरह के सामाजिक – सांस्कृतिक बदलावों के बीच विस्मृत होते मनप्राण के सहारे जीवन की अर्थवत्ता की तलाश करती इनकी कविताएँ सदैव प्रासंगिक प्रतीत होती रहेंगी .

कविता अगर जीवन का गहरा संस्कार हमें प्रदान करती है तो समाज में संवेदना के नये धरातल पर जीवनानुभूतियों को उन्मुख करने का श्रेय भी इसे दिया जाना चाहिए और इस दृष्टि से मंगलेश डबराल की कविताएँ विलक्षण अर्थों की प्रतीति से हिंदी कविता की जीवन चेतना को विस्तार देकर इसके भाषिक सौंदर्य के धरातल को बेहद मौलिक रूप में गढ़ती दिखायी देती हैं .

राजीव कुमार झा ( लेखक )

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