बिहार ऐतिहासिक – पुरातात्विक विरासत और पर्यटन की दृष्टि से देश का काफी महत्वपूर्ण राज्य है और यहाँ के बौद्ध पुरास्थल सारे संसार में प्रसिद्ध हैं . नालंदा ,विक्रमशिला और वैशाली के अलावा बिहार में बौद्ध काल के अन्य ऐतिहासिक स्थल भी हैं और यहाँ के सैकड़ों अन्य छोटे – बड़े टीलों गढ़ों और अन्य प्रकार के अवशेषों में इस राज्य के विरासत की कहानियाँ रहस्य के रूप में उत्खनन की प्रतीक्षा कर रही हैं . लखीसराय में किऊल नदी के किनारे लाली पहाड़ी पर बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग के द्वारा प्राचीन बौद्ध विहार के उत्खनन कार्य की चर्चा इस प्रसंग में समीचीन है और 1997 से कई चरणों में संपन्न होने वाले उत्खनन कार्य से यहाँ एक विशाल बौद्ध भिक्षुणी विहार का अस्तित्व सामने आया है . लाली पहाड़ी पर पुरातात्विक उत्खनन के कार्य की शुरुआत के मौके पर यहाँ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे और इस अवसर पर उन्होंने आशा प्रकट की थी कि लखीसराय के इस पुरातात्विक स्थल के प्रकाश में आने से बिहार के ऐतिहासिक विरासत के बारे में नयी जानकारी उपलब्ध होगी . बिहार सरकार ने लाली पहाड़ी पर उत्खनन कार्य के निर्देशन का उत्तरदायित्व शांति निकेतन के पुरातत्वविद डा . अनिल कुमार को सौंपा है और इनकी देखरेख में यहाँ तीन चरणों की उत्खनन अभियान पूरा हो चुका है और इससे अनेक दिलचस्प तथ्य प्रकाश में आये हैं .

लखीसराय के लाली पहाड़ी पर प्राचीन बौद्ध विहार के अवशेष जीर्णशीर्ण दशा में प्रकाश में आये हैं . इनमें इस बौद्ध विहार के चारों कोणों पर स्थित प्रहरी कक्ष के अलावा बौद्ध भिक्षुणियों के साधना कक्ष और सुरंगनुमा स्नानघर इनके अवशेष इस स्थल को दर्शनीय बनाते हैं . यहाँ के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों को जिनमें मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ शामिल हैं , वर्तमान में इनको लखीसराय के पास मनकठा के इंद्रदमनेश्वर महादेव मंदिर के संग्रहालय में रखा गया है . यहाँ बिहार सरकार एक संग्रहालय भी बनवा रही है । राजीव कुमार झा