“शब और शबनम ”
सूरज अस्त हुआ
दिन समाप्ति की धोषणा लिए
गोधूलि वेला आई।
समय ने अपनी कमान
उजाले से लेकर
अंधेरे को थमाई
चांद आया तारे आये
चांदनी भी आई
आहिस्ता आहिस्ता
रात पर खुमारी छाई
चांद ने चांदनी संग
अपना सफर शुरू किया
रात भर घूमता रहा
सुबह ओस को देख
महसूस किया
रात और ओस का
जरूर कोई नाता है
क्या रात को
कोई दुख सताता है
चाँद ने अगले सफर
रात से पूछ ही लिया
रात ने चांद को यूं जवाब दिया
अनाथ आश्रम में पलते बच्चे,
रात को जब
मां की गोद में सोने को तरसते हैं ।
मेरे नयन बरसते हैं।
वृद्धाश्रम में रहते बुजुर्ग,
रात को जब
अपनों की याद में सिसकते हैं ।
मेरे नयन बरसते हैं।
सरहद पर हताहत सैनिकों के परिजन,
रात में उन्हें याद कर जब बिलखते हैं।
मेरे नयन बरसते हैं ।
यौन हिंसा पीडित बेटी के
मां पिता रात में जब रोते कलपते हैं।
मेरे नयन बरसते हैं।
दिनभर मजदूरी के बाद भी
रात में मां बच्चों को
आधा भूखा सुला जब दुखी होती है।
मेरे नयन बरसते हैं ।
भूख से बेहाल नन्हे बालक
रात को जब झूंठन उठा कर खाते हैं
मेरे नयन बरसते हैं ।
देह व्यापार में,धकेली गई कन्याओं के
तन मन जब रात में तड़पते हैं
मेरे नयन बरसते हैं।
मेरे अश्रु शबनम बन
धरा पर बिखरते हैं
सुनो चांद मेरी आंखों से
दूसरों के दर्द बहते हैं ।।
ड़ा मीरा रामनिवास