आकाश से कहाँ गये।
वे उड़ते सारे बादल।।
सूखी धरती पर ।
सागर की लहरों को ।।
किसने कहाँ सँवारा।
बारिश में जो जंगल झूम रहा।।
वह कितना चुप है।
इस मौसम में खोया।।
शांत झील गगन में हँसती।
मन के सूने मेले में ।।
वह कहाँ विचरती ।
वह धूल भरी ।।
सूनी पगडंडी ।
आज चतुर्दिक हरियाली का घेरा ।।
इसी दिशा में सबका डेरा ।
किसने कहाँ बुलाया ।।
चहलपहल में डूबी रातें ।
खूब उमगती सुबह की साँसें ।।
रात अँधेरे की दीवारों को ।
किसने मन से तोड़ा ।।
उस जंगल के किसी किनारे ।
सबके संग सहारे ।।
इस तेज धूप में ।
साहस का यह घोड़ा ।।
कहाँ गुजरता ।
समय सारथि राह देखता ।।
किसी दूर बस्ती में कोई ।
सुंदर एक नदी बहती ।।
राजीव कुमार झा