माफिया और कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मी और गंदे चरित्र के नेताओं की तिकड़म जोड़ी कहीं न कहीं पत्रकारों पर हमले करवाने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है। मीडिया हमेशा फ्रेंडली काम करते हैं लेकिन मीडिया के कामो को तिकड़मबाजी गैंग नापसन्द करते हैं। इसमे हमारे बीच के भी कुछ साथी ऐसे होते हैं जो मीडिया की बातों को तिकड़मबाजी गैंग तक पहुंचाने और उनकी अर्दली करके दो रुपये लपकने के लिए चमचागिरी करते हैं। देखा जाय तो राज्य के सभी जिलों में कुछ पत्रकार साथी तिकड़मबाजी गैंग का हिस्सा बनकर पत्रकारिता कम और चाटुकारिता ज्यादा कर रहे हैं। ऐसे चाटुकारों को अब बेनकाब करके उनके गतिविधियों की स्टिंग करना होगा। तभी मीडिया कर्मी सुरक्षित माहौल में काम कर सकेंगे। जब सरसों में ही भूत घुसा हुआ है तो सरसो से भूत नही झाड़ा जा सकता ….उसके लिए स्पेशल इलाज की जरूरी पड़ेगी। पुलिस के पास गिड़गिड़ाना, नेताओं का परिक्रमा करना और शासन प्रशासन से सुरक्षा की भीख मांगना पत्रकारिता करने वालों के लिए इससे बड़ी शर्मिंदगी कुछ नही है। शासन-प्रशासन और नेताओं की जमीर मर चुकी है …जरा सोचिए…बिचारिये….फिर अपना निर्णय बताइए….क्योंकि डीसी पूरे जिले को संभालते हैं…..अच्छा-बुरा सभी कामो की मॉनिटरिंग करते हैं….इसलिए उन्हें सुरक्षा के लिए बॉडीगार्ड चाहिए…? जिले के एसपी अपराधियो के खिलाफ मुहिम चलाते हैं अच्छे-बुरे कार्यो के संचालन को देखते हैं कार्रवाई करते है….इसलिए उन्हें सुरक्षा के लिए बॉडीगार्ड चाहिए…? एमपी साहेब कई जिलों का दौरा करते हैं…राजनीतिक विरोधियों का शिकार हो सकते हैं….इसलिए उन्हें बॉडीगार्ड चाहिए….? विधायक को अपना क्षेत्र घूमना है ….विरोधियों और विपक्ष का खतरा हो सकता है इसलिए..उन्हें भी बॉडीगार्ड चाहिए….? इसके अलावे….डीएसपी, एसडीओ, जिप अध्यक्ष, बीस सूत्री उपाध्यक्ष सहित कुछ तथाकथित राजनीतिक और सरकार परस्त नेताओं को भी सुरक्षा के लिए बॉडीगार्ड चाहिए…..? …अब आप सोचिए एक पत्रकार घर से निकलता है …. नेताओं के घपले उजागर करता है ….?….पुलिस की भ्रष्ट कार्यशैलियो को उजागर करता है …..? ….सरकारी योजनाओं …में हुए गबन को उजागर करता है ……?….. माफियाओं के साथ पुलिस और राजनेता के गठजोड़ को उजागर करता है……? विधायक , मंत्री के भ्रष्टाचार को उजागर करता है ….? …… सरकारी संरक्षण में अवैध धंधे का उजागर करता है ….? यानी समाज मे तथाकथित संरक्षण में फैले भ्र्ष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकारों को कोई सुरक्षा नही मिलता …?….जबकि सभी के साथ पत्रकारों को ही उलझना पड़ता है। इसलिए मेरा मानना है अगर हिम्मत है ….शासन और प्रशासन और राजनेताओं में तो बिना बॉडीगार्ड के क्षेत्र में एक पत्रकार के जैसे जाकर काम करके और गलत कार्यों के खिलाफ लड़कर दिखाएं तब समझूँगा आपका जमीर जिंदा है …..?….नहीं तो मीडिया कर्मियों के सुरक्षा को लेकर अपनी थोथी दलीलें देना बंद करें और मीडिया कर्मियों की सुरक्षा को लेकर जो करना है अपनी नीति को स्पष्ट करें। मीडिया के हाथों में कलम … कैमरा और माइक है तो देश सुरक्षित है। मीडिया की इसी तटस्थता को देखकर लोग उनपर सुनियोजित हमले करवाते हैं और मीडिया पर अपनी भड़ांस निकालने का कुचक्र रचते है। देश की बड़ी मीडिया हाउस चाहे इलेक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट केवल अपनी आर्थिक हितों को साधने के लिए छोटे कस्बों और जिले के पत्रकारों को मौत के मुंह मे धकेलने का काम कर रहे हैं। मीडिया कर्मियों के आवाज को दबाने और कुचलने के लिए कहीं न कहीं देश की राज्य सरकारें और केंद्र सरकार भी एक सामान दोषी है। साथियों मीडिया पर हमले करवाने में लोकल पुलिस की भूमिका सदैव संदेहास्पद रही है। फिर चाहे वो पॉलिटिकल दबाब हो या अंदरूनी स्वार्थ का हिस्सा । अतः हमें एकजुट होकर मीडिया के खिलाफ कुचक्र रचने वाली ऐसी शासन व्यवस्था के खिलाफ़ सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन की रूपरेखा तैयार करनी होगी ताकि देश मे पत्रकार सुरक्षा कानून प्रभावी तरीके से लागू हो और मीडिया को निशाना बनाने वालों के खिलाफ सख्ती से करवाई हो । इसलिए आप तमाम साथियों से विनम्र निवेदन है कि वर्तमान समय आपस मे उलझने और लड़ते रहने का नही… बल्कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता जिंदा रहे इसके लिए जीवन के अंतिम सांस तक प्रयास करना है….विजय होगी …और अवश्य होगी….एकबार कदमताल मिलाकर कर तो देखें……जोश और जुनून के साथ अपनी आवाज को बुलंद करें…और इंकलाबी नारे के साथ इसकी आगाज करें…इंकलाब जिंदाबाद….पत्रकार एकता जिंदाबाद..
जय हिंद….जय भारत।
आपका क्रांतिकारी साथी🙏🏻🙏🏻
रामप्रवेश सिंह, प्रदेश अध्यक्ष , AISMJWA झारखंड।