सन् 1990 के दिसंबर में बचेली के केंद्रीय विद्यालय से मथुरा के केंद्रीय विद्यालय में मेरा स्थानांतरण हो गया . मेरे लिए मथुरा का परिवेश बिल्कुल नया था और यहाँ पहली बार मैं आया था लेकिन इस नगर की एक अद्भुत पौराणिक छवि इसके पहले से भी मेरी कल्पनाओं में समायी थी . यहाँ आने के बाद मथुरा को मैंने इसी अनुरूप मैंने देखा और जाना . टेंगनमाड़ा और बचेली इन दोनों ही नगरों की तुलना में मथुरा का सामाजिक परिवेश काफी भिन्न था और शायद यहाँ इसलिए जीवन की कई नयी बातें मुझे यहाँ सीखने को मिलीं ।
आजकल तमाम कलाओं के वे लोग जो मूलत : गाँवों , कस्बों , छोटे – बड़े शहरों के रहने वाले हैं ,ये सभी लोग सामान्यत : व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर महानगरों की ओर जिंदगी का रुख करते दिखायी देते हैं . मेरे मन में भी दिल्ली – मुंबई इन महानगरों में जाकर व्यावसायिक स्तर पर कलाकर्म में खुद को संलग्न करने की बात सदैव रहती थी . बचेली में कुछ सालों की सेवा के बाद मेरे स्थानांतरण का समय आने पर केंद्रीय विद्यालय संगठन ने मुझसे मेरे दो मनपसंद जगहों के बारे में पूछा था और मैंने पहले दिल्ली और फिर मथुरा का नाम सुझाया था . खैर ! संयोग देखिये , दिल्ली की जगह मेरा स्थानांतरण मथुरा हुआ .
मथुरा आने के बाद यहाँ कई साहित्यिक लोगों का सान्निध्य मुझे सहजता से प्राप्त हुआ . इन लोगों में जगदीश व्योम की चर्चा मैं सबसे पहले करना चाहूँगा . ये मथुरा के केन्द्रीय विद्यालय में ही हिंदी शिक्षक के पद पर कार्यरत थे और साहित्यिक संस्कारों के व्यक्ति थे . इसके अलावा कमलेश भट्ट कमल से भी मथुरा में ही भेंट हुई . ये आयकर उपायुक्त के पद पर कार्यरत थे . यहाँ दिनेश पाठक शशि अक्सर साहित्यिक संगोष्ठियाँ आयोजित करते थे . कमलेश भट्ट कमल की भी संगमन नामक साहित्यिक संस्था थी .
संगमन के साहित्यिक आयोजन में एक बार यहाँ प्रियंवद और कमलेश्वर का आगमन भी हुआ था और मैंने उनके कार्यक्रम का पोस्टर बनाया था . मथुरा के लेखकों में सव्यसाची का नाम भी प्रमुखता से शामिल है , वे राधिका विहार में रहते थे और वहाँ उनका एक स्कूल भी था . उनसे मेरी भेंट नहीं हो पायी वे तब तक गुजर गये थे .
सव्यसाची उत्तरार्द्ध नामक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन करते थे . उनके देहांत के बाद उनकी पत्नी इस पत्रिका का संपादन कर रही थीं और लघु पत्रिकाओं की प्रदर्शनी भी करती थीं . उत्तरार्द्ध के कई अंकों में कला रेखांकन का काम मैंने किया . इसी दौरान लिजेंड न्यूज में मेरे कुछ कार्टून भी प्रकाशित हुए .
मथुरा में मोहन स्वरूप भाटिया से भी मेरा परिचय हुआ और इनका गोवर्धन के पास ज्ञानोदय नामक स्कूल था . भाटिया साहब उत्तर प्रदेश नाट्य अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष और हरेक साल नाट्य महोत्सव आयोजित करते थे . मथुरा आने से पहले हिंदी के आधुनिक नाटकों का प्रदर्शन मैंने बिलकुल भी नहीं देखा था . यहाँ मोहन स्वरूप भाटिया के नाट्य समारोह में मैंने स्वदेश दीपक के प्रसिद्ध नाटक बाल भगवान और कोर्ट मार्शल का मंचन देखा . इस नाटक से मैं काफी प्रभावित हुआ और रंगकर्म के प्रति मेरे मन में रुझान कायम हुआ . भाटिया साहब के नाट्य समारोह के पोस्टर के लिए नाटकों के पात्रों का रेखांकन भी मैंने बनाया .
मथुरा में रामचरण अग्रवाल भी ब्रजकला संस्थान के तत्वावधान में साहित्यकारों के सम्मान समारोह का आयोजन किया करते थे और यह श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर में होता था . इसमें एक साल मैं भी समारोह के सजावट और सज्जा के काम में शरीक हुआ . मेरी रीति काल के प्रसिद्ध कवि देव की बनायी मूर्ति यहाँ सबको पसंद आयी .इस प्रकार मथुरा में मेरे कलाकर्म का दायरा विस्तृत हुआ लेकिन पेंटिंग और इसकी बिक्री से जुड़ी गतिविधियाँ अभी भी शुरू नहीं हो पायी थीं और अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी भी मैं करना चाहता था . इसी दौरान सहस्राब्दी के घाट पर इस नाम से मेरी कविताओं का संकलन भी प्रकाशित हुआ और मथुरा के ही मेरे लेखक मित्र विवेक निधि ने इसकी भूमिका लिखी .
मथुरा के अपने साहित्यिक मित्रों में चन्द्रभाल सुकुमार का नाम भी मैं याद करना चाहूँगा . यहाँ जनवादी लेखक संघ के साहित्यिक आयोजनों में भी मैं नियमित रूप से शरीक होता था और इसमें अलीगढ़ के कुँअरपाल सिंह और नमिता सिंह भी आया करते थे .
मथुरा में ब्रजभाषा में कविताएँ लिखने वाले लेखकों से भी परिचय हुआ . यहाँ का संग्रहालय भी दर्शनीय है और मैं अक्सर इसकी गैलरियों में संग्रहित कलाकृतियों को देखने जाता था . प्राचीन मथुरा शैली की मूर्तियाँ इस संग्रहालय में काफी हैं .
मथुरा मूर्तिशिल्प के प्रभाव से कालांतर में मथुरा चित्रशैली का भी विकास हुआ और इस चित्रशैली के महान कलाकार के रूप में कन्हाई चित्रकार का नाम प्रसिद्ध है . भारत सरकार ने उनको पद्मश्री का सम्मान प्रदान किया है . वृंदावन में इनकी आर्ट गैलरी थी . कन्हाई चित्रकार सोने के रंगों का प्रयोग भी अपनी पेंटिंग में किया करते थे . इनकी आर्ट गैलरी भी मैं देखने गया और इनसे मुलाकात हुई . कन्हाई चित्रकार पारंपरिक चित्रशैली के कलाकार थे और इनके कलाकर्म पर आधुनिक शैली का कोई प्रभाव नहीं था .
इसी दौरान मथुरा के एक व्यक्ति मनु हांडा के सौजन्य से मैंने यहाँ इमेज टुडे नामक अपनी आर्ट गैलरी को भी स्थापित किया लेकिन गैलरी ठीक ठाक ढँग से चल नहीं पायी . इसमें मैंने आधुनिक शैली में बनाये अपने चित्रों को प्रदर्शित किया था . मथुरा में श्रीकृष्ण की जीवनकथा को मैंने बीस मीटर लंबे कपड़े पर चित्रित किया . वृंदावन के इस्कान मंदिर को भी मैंने अपनी कुछ पेटिंग भित्ति अलंकरण के लिए दिया . यहाँ कलाकृतियों के स्टाल पर भी मैंने अपनी पेटिंग बिक्री के लिए रखी . दीपावली के आसपास वृंदावन में मेला लगता था . यहाँ एक रूसी कृष्णभक्त चित्रकार भी रहते थे . उनके स्टूडियो में भी मैं गया और उनसे बातचीत हुई . मथुरा के इन जीवनानुभवों ने मेरे कलाकर्म को विस्तार दिया और मेरे वर्तमान कलाकर्म की नींव यहाँ कायम हुई .
मथुरा की यह कहानी बीस – बाईस साल पुरानी है और यहाँ इस दरम्यान काफी कुछ बदलता भी गया . यहाँ के तत्कालीन परिवेश की स्मृतियाँ अपनी पुरानी पेंटिंग्स में आज भी मुझे सजीव प्रतीत होती हैं . मथुरा में यमुना के घाट , होली गेट , द्वारिकाधीश मंदिर के अलावा वृंदावन में रहने वाली विधवाओं के जीवन यथार्थ को अपनी पेंटिंग में खासकर मैंने उकेरा . मथुरा के बेहद पुराने मकानों ने भी मेरे मन को आकृष्ट किया और इनकी बनावट , भाव भंगिमा को सहजता से मैंने कैनवास पर उकेरा और मेरे सिटी इस्केप चित्र श्रृंखला में मथुरा की ये सारी पेंटिग्स संग्रहित है .
मथुरा देश का एक प्राचीन नगर है और इसके पुराने हिस्सों में खासकर यहाँ के मकान , मंदिर और घाट हमारे धर्म और संस्कृति की पुरातनता को अपनी भाव भंगिमा में प्रकट करते हैं लेकिन इस शहर का नया आधुनिक हिस्सा इससे काफी दूर स्थित दिखायी देता है . वृंदावन के अलावा मथुरा के आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल गोकुल , नंदग्राम और बरसाने भी मैं गया . यहाँ सुंदर अनुभूति होती है . वृंदावन में प्रेम मंदिर के अलावा यहाँ सात मंजिल ऊँचे पागल बाबा के मंदिर में भी मैं गया . मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के आसपास काफी मुस्लिम आबादी है लेकिन यहाँ सारे लोग मेलजोल से रहते हैं .
यहाँ के लोगों में प्रेम और शिष्टता का भाव समाया है और रिक्शेवाला भी राधे राधे कहकर संबोधन करता है . सचमुच यह कृष्ण की नगरी है .
( चित्रकार जितेंद्र साहू की जीवनकथा का यह अंश उनसे राजीव कुमार झा की बातचीत पर आधारित है । )