सर्विस बिफोर सेल्फ’ अपने से पहले दूसरे के विषय में सोचिए। इसी सूत्रवाक्य को सेवानिवृत्त वायुसेना अधिकारी स्कवाड्रन लीडर राखी अग्रवाल ने अपनी जिंदगी का फलसफा बना लिया। सरस्वती शिशु मंदिर के अनुशासित और प्रेरणादायक वातावरण वाले प्रांगण में राखी को जो संस्कार मिले उनके कारण वो बचपन से ही कुछ बनने के कुछ अलग करने के सपने संजोने लगीं। समझदार हुईं तो अपने आसपास की बातों और प्रेरणादायी लोगों से प्रभावित होकर खुद को एक वर्दीधारी ऑफिसर की तरह देखने लगीं। जैसे ही पता चला कि डिफेंस सर्विसेज में महिलाओं की भर्ती प्रारंभ हो गई तो बस वहीं से एक दिशा मिल गई।
राखी कहती हैं, दिन रात प्रयत्न किया और पहले ही प्रयास में सफलता मिली। मैं भारतीय वायुसेना की एक अधिकारी बन गई। घर का परिवेश शैक्षिक था, सबका खूब साथ मिला। पढ़ाई, लिखाई, खेलकूद अन्य गतिविधियों में मैं हमेशा से आगे थी। पर हां! शुरू से हिंदी माध्यम में शिक्षा लेने के कारण मुझे अगर कुछ आवश्यकता थी तो वो थी अपनी अंग्रेजी की कन्वरसेशन स्किल्स को बढ़ाने की, उस पर मैंने काम किया। इसके सकारात्मक नतीजे भी आए। मगर यह भी महसूस किया कि भाषा व्यवधान कभी नहीं बनती, आपको संवाद करना आना चाहिए। अपनी बात आत्मविश्वास के साथ तर्कपूर्ण तरीके से कहना आना चाहिए। मैंने अपने एसएसबी इंटरव्यू में भी और सर्विस के भी दौरान जब जरूरत पड़ी हिंदी भाषा का प्रयोग किया और साथ ही साथ अंग्रेजी भाषा को भी पूरे प्रयास से अपनी ताकत बनाया। 11 साल तक एयरफोर्स में काम कर सेवानिवृत्ति के बाद आइआइएम अहमदाबाद से मैनेजमेंट कोर्स किया। उसके बाद कार्पोरेट और सिविल एविएशन में वरिष्ठ पदों पर जिम्मेदारी संभाली। राखी कहती हैं, मैंने पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी।