पूर्वी लद्दाख में नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गलवन घाटी में चीनी सेना दो किलोमीटर पीछे हट गई है। पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 से चीनी सैनिकों के पीछे हटने से साफ है कि चीन पर दबाव बनाने की भारत की चौतरफा रणनीति कारगर होती दिख रही है। सामरिक, कूटनीतिक ही नहीं, आर्थिक घेरेबंदी के भारत के सधे कदमों ने ड्रैगन को तनाव घटाने के लिए सम्मानजनक और लचीले रास्ते पर आने को विवश कर दिया है।
गलवन घाटी से चीनी सैनिकों के पीछे हटने में सबसे बड़ा योगदान चीन को आमने-सामने के सैन्य संघर्ष के लिए तैयार होने का भारत का दो टूक संदेश माना जा रहा है। एलएसी पर चीन ने जिस तरह कई जगहों पर भारी संख्या में अपने सैनिकों और हथियारों को तैनात किया। उसके बाद भारत ने भी इसी अनुपात में अपने सैनिकों को अग्रिम मोर्चों पर तमाम-अस्त्र शस्त्रों के साथ उतार दिया। इसमें टैंकों, मिसाइलों से लेकर हाई स्पीड बोट भी शामिल हैं। सेना के साथ वायुसेना को भी हाई अलर्ट मोड में कर दिया गया और शनिवार को तो भारतीय वायुसेना के सुखोई, मिग, मिराज, जगुआर लड़ाकू जेट विमानों ने तो एलएसी पर अपने इलाके में उड़ान भर चीन को साफ संदेश दे दिया कि सैन्य ताकत के सहारे एलएसी को नये सिरे से परिभाषित करने की चीनी कोशिश का सैन्य तरीके से ही जवाब देने से भारत नहीं हिचकेगा। भारतीय नौसेना भी हिन्द महासागर में चीनी नौसेना को थामने के लिए पूरी तरह सतर्क है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते शुक्रवार अचानक लेह का दौरा कर न केवल हालात का सीधे जायजा लिया, बल्कि चीन को सख्त संदेश देते हुए चौंकाया भी। इसमें कोई दो राय नहीं कि चीन बड़ी सैन्य ताकत है मगर सीधे सैन्य संघर्ष का जोखिम उठाना उसके लिए भी आसान नहीं है।
गलवन घाटी की अहमियत
गलवन घाटी के अतिक्रमण स्थल से चीनी सैनिकों के पीछे हटने भर से ही एलएसी पर तनाव का दौर खत्म नहीं होगा, क्योंकि अभी कई और जगहों से चीनी सैनिकों को पीछे हटना है। लेकिन पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 से हटने की शुरूआत करना इस लिए अहम है, क्योंकि इसी जगह 15-16 जून की रात दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था। इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इस संघर्ष में कई चीनी सैनिक भी मारे गए, मगर चीन ने अभी तक इसका खुलासा नहीं किया है।