भगवान भोलेनाथ की आराधना का पवित्र माह सावन का माह आज से शुरु हो चुका है। कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण भक्तों के लिए शिवालय के द्वार बंद हैं लेकिन श्रद्धालु अपने घर पर ही शिव आराधना कर रहे हैं। शिव आराधना के इस माह में शिवलिंग पर दूध और धतूरा विशेषकर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव को अर्पित किये जाने वाले इन दोनों की पदार्थों का वैज्ञानिक महत्व भी है। इस बाबत धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी ने बताया कि आयुर्वेद के अनुसार जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है वो सनातन है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें हैं। शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भी वैज्ञानिक आधार रखता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि सावन के महीने में वात की बीमारियांं सबसे ज्यादा होती हैं। वात की समस्या को रोकने लिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिए। सावन के मौसम में सभी पशु घास और पत्तियां खाते हैं जिनसे उनमें वात रोग होने की संभावना बढ़ जाती हैं। जिसके कारण उनके दूध का सेवन करने से भी वात रोग बढता हैं। महादेव ने जगत कल्याण हेतु विषपान किया था इसलिए उनका अभिषेक दूध से किया जाता है। शिवलिंग का वैज्ञानिक महत्व भी है। भारत सरकार के न्यूक्लिअर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।
ये है पौराणिक महत्व
पंडित वैभव बताते हैं कि देवों और असुरों ने साथ मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था लेकिन मंथन के बाद जो सबसे पहले उनके हाथ लगा वह था हलाहल विष। दुनिया की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस हलाहल विष का पान किया। शिव जी के पास खड़ी माता पार्वती ने शिव जी के गले को कसकर पकड़ लिया जिससे विष उनके गले के नीचे नहीं उतर सका। इस कारण भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता हैं। विष का घातक प्रभाव शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा। ऐसे में शिव को शांत करने के लिए जल की शीलता भी काफी नहीं थी और मंथन से निकले हलाहल विष के कारण उनका शरीर जलने लगा था। इसी विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवों ने कामधेनु के शीतल दूध का सेवन करने का आग्रह किया। यह वही कामधेनु हैं जिसका जन्म समुद्र मंथन के दौरान ही हुआ था। और ये सात देवताओं द्वारा ग्रहण की गयी थी। देवों के इस सुझाव से भगवान शिव ने कामधेनु के शीतल दूध का सेवन किया। जिससे भगवान शिव को शीतलता की प्राप्ति हुई थी और विष का प्रभाव भी कम हो गया था।
आक धतूरा सोंखते हैैं न्यूक्लिअर एनर्जी
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है। क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता है। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।