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सेहरा का सपना.. हल्दी से विदाई, मुठभेड़ की भेंट चढ़ी मां की कोख संग ये ख्‍वाहिश

उसके लिए तो सब कुछ लुट जाने जैसा था। जितेंद्र के जाने के बाद मानों कुछ बचा ही नहीं। थकी आंखें, बिखरे बाल, गुमसुम। जिस मां के सपनों की दुनिया उजड़ जाए वह भला करे भी क्या। आंसुओं के सैलाब के बीच जब बेटे का पार्थिव शरीर गांव की देहरी पर पहुंचा तो ऐसी बिलखी कि सन्नाटा टूट गया। पूरा गांव चीखों में डूब गया। सुबह जब अंतिम संस्कार की बारी आई, मां फिर बिफरी और दौड़कर बेटे की ओर बढ़ी, तो मंजर पत्थर दिल वालों को झकझोर देने वाला था। बेटे का माथा चूमा। बंद मुट्ठी में हल्दी थी, जो बेटे के चेहरे पर लगा दी। सेहरा बांधने का सपना देखने वाली मां ने बेटे को हल्दी लगा विदाई दी, तो एक बारगी सन्नाटा फिर छा गया। कुछ सुनाई दे रहा था, तो बस बेबस मां की सिसकियां..

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मां रानी कानपुर में बदमाशों से मुकाबले में लाल के बलिदान पर कुछ बोल नहीं पा रही थीं। शुक्रवार सुबह जब बेटे के बलिदान की खबर गांव नवादा में मिली, तो मां के सारे सपने तिनके की तरह बिखर गए। बेटे के साथ सारी उम्मीदें भी जमींदोज हो गईं। कानपुर से तिरंगे में लिपटा बेटे का पार्थिव शरीर शुक्रवार आधी रात के बाद लेकर मां गांव बरारी पहुंची। देहरी पर पहुंचते ही फिर बिलखी और गांव का सन्नाटा मां की चीखों से टूट गया। सुबह अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। मां की वेदना आंखों में समंदर की तरह उफान मारने लगी। मां सोचती रही, बिलखती रही, टूटती रही। लेकिन करती भी क्या, मजबूर थी। बेटा तो ऐसी दुनिया में चला गया, जहां से उसे लौटाकर लाना नामुमकिन था। ये एक मां के अरमान ही थे,अंतिम संस्कार से पहले बेटे के चेहरे पर शगुन की प्रतीक हल्दी लेप दी। हाथ कांपते रहे, आंसुओं के सैलाब के बीच मां ने अपने अरमान पूरे किए। भले ही अविवाहित बेटे को अंतिम विदाई में हल्दी लगाने को कुछ लोग परंपरा मान रहे हों, लेकिन एक मां के लिए अपनी हसरत पूरी करने का अंतिम मौका था। बेटे को जब रुख्सत किया, तो पार्थिव देह से लिपट गई, खूब बिलखी..आखिर एक मां के अरमान लिए बेटे को जुदा होना ही पड़ा।
कानपुर में बदमाशों से मुठभेड़ में बलिदानी सिपाही जितेंद्रपाल सिंह तीन भाइयों और एक बहन में सबसे बड़े थे। पिता तीर्थपाल और मां रानी तो जान छिड़कते थे। बड़े होने के कारण छोटों की जिम्मेदारी भी कंधे पर थी। 2018 में जब वर्दी धारण की तो पूरे परिवार की उम्मीदें जितेंद्र से बंध गईं।
कुछ माह से जितेंद्र की रिश्ते की बात भी हो रही थी। मां रानी ने बहू के घर में आने पर सपने भी बुनने शुरू कर दिए। 23 जून को जब जितेंद्र घर आए, तो भी उससे जल्द घोड़ी चढ़ाने की बात बताई थी। लाडला तब मां की बात पर मुस्करा दिया। इसे सभी ने शादी की सहमति ही माना था।

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