हाथ से दिव्यांग लोगों के लिए राहत की खबर है। अब उन्हें रोजमर्रा के काम निपटाने के लिए किसी पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा। कृत्रिम हाथ दिमाग के इशारे पर शरीर की ऊर्जा से वो सारे काम करेगा जो वास्तविक अंग करते हैं। एचबीटीयू के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष प्रो. यदुवीर सिंह के निर्देशन में पूर्व छात्र घनश्याम ने ये हाथ बनाया और 20 से ज्यादा दिव्यांगों पर आजमाया। इसके सफलतापूर्वक काम करने के बाद इसे पेटेंट कराया गया है। अब एलिम्को से करार कर बड़े पैमाने पर निर्माण की तैयारी है। प्रो. यदुवीर ने बताया कि रबर व फाइबर से बने इस हाथ की खासियत यह है कि शरीर में उत्पन्न होने वाली बायोनिक ऊर्जा से संचालित होता है। यह ऊर्जा हमारे दिमाग के निर्देश पर काम करती है। इस हाथ को स्प्रिंग, सर्वो मोटर, कैंप इलेक्ट्रोड व एंप्लीफायर सॢकट लगाकर तैयार किया गया है। इसमें एंप्लीफायर का काम शरीर की ऊर्जा को अधिकतम 15 माइक्रो वोल्ट में बदलना है, जिससे हाथ ठीक से काम कर सके। इसमें लगे इलेक्ट्रोड अपने सिग्नल माइक्रो कंट्रोलर के पास भेजते हैं जिससे कृत्रिम हाथ दिए गए निर्देशों पर काम करता है। कृत्रिम हाथ को जब दिव्यांग के हाथ में फिट किया जाता है तो वह दिमाग से मिलने वाले सिग्नल पर काम करने लगता है। इससे हाथ पानी का गिलास व प्लेट समेत कोई भी चीज उठा सकता है। वह दरवाजा खोल और बंद कर सकता है।
ऐसे करता है काम
कृत्रिम हाथ दिव्यांग की बांह में कैलीपर के जरिए फिट किया जाता है। इसके पीछे के भाग में दो मायोग्राम इलेक्ट्रोड के तार लगाए गए हैं, जिन्हेंं चमड़ी पर जेल से चिपका दिया जाता है। यह एल्युमिनियम के तार होते हैं। मनुष्य की सोच पर यह इलेक्ट्रोड कृत्रिम हाथ से चीजों को पकडऩे, मुट्ठी बांधने व हाथ को इधर उधर घुमाने का काम कराते हैं। क्योंकि कोई काम करने से पहले हम उसके लिए सोचते हैं। शरीर उस सोच को इलेक्ट्रिकल तरंगों में परिवर्तित करता है। इन्हीं तरंगों के जरिए अंग काम करते हैं यही फार्मूला कृत्रिम हाथ में भी लागू है। इसमें एक एंप्लीफायर लगाया गया है जो शरीर की ऊर्जा अथवा शरीर में बनने वाले बायोनिक करंट को माइक्रो वोल्ट करंट में बदलकर हाथ को संचालित करता है। जहां पर इन इलेक्ट्रोड को जोड़ा जाता है हाथ का वह हिस्सा एक्टिव होता है जो कृत्रिम हाथ को चलाता है।