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चीनी सामान के बहिष्कार से यूं होगा आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार

वर्ष 1991 से प्रारंभ हुई नई आर्थिक नीति के बाद भूमंडलीकरण का विचार नीति निर्माताओं के मन मस्तिष्क पर इस कदर छाया हुआ था कि उन्हें देश में विनिर्माण संबंधी उद्योगों को संरक्षण एवं संवर्धन, आत्मनिर्भरता आदि विचार दकियानूसी से लगते थे।

टैरिफ में लगातार कमी करते हुए दुनिया को यह संकेत दिए जा रहे थे कि वह भारत में अपना सब सामान न्यूनतम आयात शुल्क पर बेच सकते हैं। यह भी कहा जा रहा था कि विदेशों से कल-पुर्जे और तैयार सामान कम टैरिफ पर आने के कारण उपभोक्ताओं को सामान सस्ता मिलेगा और उनका जीवन स्तर बेहतर हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में गिरावट के बाद हमारा व्यापार घाटा कम हुआ : लेकिन देश ने देखा कि 1991 के बाद से लगातार और 2001 (जब चीन डब्ल्यूटीओ का सदस्य बना) के बाद से और ज्यादा तेजी से हमारा विदेशी व्यापार घाटा बढ़ता गया जो 2012-13 तक 190 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। वर्ष 2013 के बाद अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में गिरावट के बाद हमारा व्यापार घाटा कम हुआ। हालांकि इसके बाद भी यह उच्च स्तर पर रहा (और 2018-19 में यह 184 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया)। समझा जा सकता है कि चूंकि हम इतना अधिक आयात करने लगे थे कि हमारी निर्भरता विदेशों और विशेष तौर पर चीन पर अत्यधिक बढ़ गई थी। हमारे उद्योग या तो बंद हो गए या अपनी क्षमता से कहीं कम स्तर पर काम करने लगे थे। इसका सीधा असर हमारे रोजगार सृजन पर पड़ा।

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