एंबेसडर कार से एक भारी-भरकम आदमी उतरा। उसके पीछे चार-पांच गार्ड भी थे। उसका रौब देखकर ही समझ आ गया कि यह कोई बड़ा आदमी है। वह सीधे मेरी दुकान में आया और बिना किसी औपचारिकता के कुर्सी पर बैठ गया।
उसने धीमी लेकिन ठंडी आवाज़ में कहा –
“तुम रामकृष्ण उपाध्याय हो ना? तुम्हारा नाम बहुत सुना है… कहते हैं कि तुम इंसान के भूतकाल की हर सच्चाई बता सकते हो।”
मैंने सिर झुका लिया, हाथ जोड़कर बोला –
“जी, जैसा लोग कहते हैं वैसा ही है।”
वह मेरे और पास झुक आया, उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी।
“मैं यहाँ अपना भविष्य जानने आया हूँ। मुझे बताओ… मुझे राजा की गद्दी कब तक मिलेगी? मैंने इसके लिए बहुत कुछ किया है। यहाँ तक कि उसके असली वारिस को बचपन में ही मरवा दिया था… लेकिन अब भी वह बूढ़ा राजा मुझे गद्दी नहीं सौंप रहा। उल्टा, वह अपने किसी रिश्तेदार को वारिस बनाना चाहता है।”
उसकी बात सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मेरे सामने कोई साधारण ग्राहक नहीं बैठा था, बल्कि खून से सनी राजनीति का खिलाड़ी था। और सबसे डरावनी बात – उसकी आँखों में ऐसी वहशियत थी, जैसे अगर मैंने उसे संतुष्ट जवाब न दिया तो अगला शिकार मैं ही होऊँगा।
उसने मेरी तरफ झुकते हुए कहा –
“अगर तुमने सच नहीं बताया… या फिर गद्दी के रास्ते में कोई रुकावट बताई… तो याद रखना, तुम्हें यह कुर्सी हमेशा के लिए छोड़नी पड़ेगी। समझे?”
मेरे हाथ-पाँव कांपने लगे। माथे पर पसीना छलक आया। पिशाचिनी की मदद से अब तक मैं सिर्फ छोटे-मोटे लोगों को प्रभावित कर रहा था। लेकिन यह मामला बहुत बड़ा था। अगर यह नेता मेरी असलियत जान गया कि मैं भविष्य नहीं देख सकता… तो मेरी लाश भी कोई नहीं ढूँढ पाएगा।
मैंने हिम्मत जुटाई और भीतर से पुकारा –
“पिशाचिनी!”
रात को जिस तरह वह भोग लेने आती थी, वैसे ही अचानक हवा भारी हो गई। कमरे के कोनों में अंधेरा और गाढ़ा होने लगा। मंत्री कुछ असहज होकर कुर्सी पर पीछे की ओर झुक गया।
मेरे कान के पास एक ठंडी फुसफुसाहट गूंजी –
“रामकृष्ण… यह आदमी खून से लथपथ है… इसकी आत्मा में पाप का बोझ है। यह जो चाहता है, वह आसान नहीं। राजा अब भी इसकी नीयत समझ चुका है… और जब तक राजा जिंदा है, गद्दी इसे नहीं मिलेगी।”
मैं घबरा गया। पिशाचिनी की आवाज़ में भय था, मानो वह खुद भी इस प्रश्न से परेशान हो। मैंने धीमे स्वर में पूछा –
“तो इसका समाधान क्या है? अगर मैंने इसे यही सच बता दिया… तो यह मुझे मार डालेगा।”
पिशाचिनी हँस पड़ी, उसकी हँसी ने मेरी रीढ़ की हड्डी जमा दी।
“समाधान एक ही है… इसे गद्दी तभी मिलेगी जब राजा की सांसें टूटेंगी। और राजा की मौत… इसके ही हाथों लिखी है। पर सावधान रहना रामकृष्ण… अगर तुमने यह रहस्य सीधे-सीधे कह दिया, तो यह तुम्हें भी अपने राजदारों की तरह मिटा देगा। तुम्हें इसकी लालसा को भड़काना है… लेकिन बिना सच्चाई उजागर किए।”
मंत्री अब और बेचैन होकर बोला –
“चुप क्यों हो गए? बताओ! राजा की गद्दी कब मेरी होगी?”
मैंने काँपती आवाज़ में कहा –
“मंत्री जी… आपका भूतकाल साफ-साफ दिखाई दे रहा है। आपने जो किया, वह सब मुझे दिख रहा है… और यही आपके लिए सबसे बड़ी गारंटी है। लेकिन… गद्दी आसान चीज़ नहीं है। इसके लिए अभी एक बलिदान बाकी है। जब तक वह बलिदान पूरा नहीं होता… गद्दी आपके हाथ नहीं आएगी।”
मंत्री की आँखें चमक उठीं।
“कौन सा बलिदान? बोलो! मैं किसी को भी मिटा सकता हूँ… बस गद्दी चाहिए।”
मैं भीतर से और डर गया। मैंने तुरंत पिशाचिनी की ओर देखा। उसकी काली परछाईं मेरे कान में फिर से फुसफुसाई –
“इसे अधूरे शब्दों में उलझा दो… इसे खून की राह पर धकेल दो… तभी यह तुम्हें ज़िंदा छोड़ेगा।”
अब रामकृष्ण को समझ आ गया था कि वह फँस चुका है। अगर सच बोलेगा, तो मौत निश्चित है। अगर झूठ बोलेगा, तो मंत्री का खूनखराबा बढ़ेगा और उसका पाप भी रामकृष्ण के हिस्से में आएगा।
लेकिन एक बात साफ थी—
आज से उसकी ज़िंदगी सिर्फ पिशाचिनी के हाथों में नहीं, बल्कि इस खूनी मंत्री की राजनीति में भी उलझ चुकी थी।
डिस्क्लेमर:
यह कहानी केवल मनोरंजन और जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। इसमें वर्णित पात्र, घटनाएँ और प्रसंग काल्पनिक हैं। किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय, संस्कृति या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाना हमारा उद्देश्य नहीं है। पाठक/दर्शक इसे केवल मनोरंजन और लोककथाओं के रूप में ही लें।