प्रेरणादायक है संते की कहानी
रवींद्र गोपीनाथ संते का मुंबई से लॉर्ड्स तक का सफर काफी रोचक है। यह भारत में विकलांग क्रिकेटरों को प्रेरित करने वाला है। बचपन से ही दाहिने हाथ में लकवा होने के बावजूद इस बाएं हाथ के स्पिन ऑलराउंडर को मुंबई के शीर्ष स्थानीय टूर्नामेंटों में अपनी छाप छोड़ने से नहीं रोका जा सका।
यह मेरे लिए गर्व की बात है
रवींद्र गोपीनाथ संते ने गुरुवार को मुंबई मिरर से कहा, “भारत की मिश्रित विकलांगता टीम का नेतृत्व करना गर्व की बात है। यह एक नया और अलग अनुभव होगा क्योंकि पहले अलग-अलग विकलांगताओं के लिए अलग-अलग टीमें होती थीं। यह पहली बार है जब भारत मिश्रित विकलांगता टीम उतार रहा है और इसमें शारीरिक, सीखने और सुनने/बोलने की अक्षमता वाले खिलाड़ी शामिल हैं। सभी तीन विकलांगता श्रेणियां पहली बार एक साथ आ रही हैं।”
बीसीसीआई का सपोर्ट मिला
डॉक्टर से हुई थी गलती
संते सिर्फ छह महीने के थे जब डॉक्टर के दो गलत इंजेक्शन की वजह से उनका दाहिना हाथ लकवाग्रस्त हो गया था। उन्होंने कहा, “मैंने केवी पेंढारकर कॉलेज की तरफ से लेदर-बॉल क्रिकेट खेलना शुरू किया। डोंबिवली में पले-बढ़े होने की वजह से हमारे पास आज के बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं थीं। एक कॉलेज मैच के दौरान मैंने फिफ्टी ठोकी और विरोधी टीम के अंपायर बहुत प्रभावित हुए और यहीं से मेरा सफर शुरू हुआ।”