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लुधियाना उपचुनाव: अंदरूनी कलह से जूझ रही AAP, कांग्रेस और SAD के लिए अग्निपरीक्षा, क्‍या भाजपा लगा पाएगी सेंध?

लुधियाना पश्चिमी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के माध्यम से पंजाब में सभी राजनीतिक पार्टियां वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। वर्तमान में सभी सियासी पार्टियों की स्थिति एक समान है।
सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर है, क्योंकि वह इस सीट के जरिए एक राज्यसभा सीट की भी तलाश कर रही है। वहीं पार्टी के वालंटियरों में उठ रही बगावत की चिंगारी लुधियाना में उसकी जीत की राह को संकीर्ण कर रही है।
कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। यदि कोई पार्टी बिना किसी नफा-नुकसान के चुनावी मैदान में है, तो वह भाजपा है। इन दिनों हर पार्टी के नेताओं की जुबान पर लुधियाना पश्चिमी विधानसभा सीट का उपचुनाव है। कांग्रेस पार्टी, जो कई धड़ों में बंटी हुई है के नेता एक-दूसरे के विरोधियों को अपने गुट में शामिल करने में जुटे हुए हैं ताकि दल में अपना वर्चस्व बना सकें।

राजनीति में नई जोर आजमाइश

गत दिनों पार्टी के प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग की मर्जी के खिलाफ कार्यकारी प्रधान और लुधियाना पश्चिमी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार भारत भूषण आशु के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी और विधायक राणा गुरजीत ने आम आदमी पार्टी के नेता कमलजीत कड़वल को शामिल कर लिया। उसके अगले ही दिन, अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने चन्नी के विरोधी माने जाने वाले निलंबित विधायक विक्रम सिंह चौधरी को पार्टी में शामिल कर लिया।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं में क्‍यों है नाराजगी?

इस प्रकार कांग्रेस पूरी तरह से दो खेमों में बंट चुकी है। यह भी स्पष्ट दिख रहा है कि पार्टी प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग, जो लुधियाना के सांसद भी हैं, को कांग्रेस के उम्मीदवार भारत भूषण आशू अपने विधानसभा क्षेत्र में घुसने तक नहीं दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी की स्थिति भी इससे कुछ अलग नहीं है। पार्टी के दिल्ली के नेताओं को पंजाब में विभिन्न विभागों में पद दिए जाने से स्थानीय नेता नाराज हैं।

पिछले तीन वर्षों से चुप बैठे वालंटियर इसके कारण अब खुलकर पार्टी लीडरशिप के खिलाफ बोलने लगे हैं। हालांकि, पार्टी ने बगावती सुर अपनाने वाली महिला विंग की प्रदेश प्रधान प्रीति मल्होत्रा को बाहर का रास्ता दिखा दिया है और मोगा की विधायक डॉ. अमनदीप कौर को नया प्रधान बना दिया है, लेकिन उनके खिलाफ यह सख्त कदम कार्यकर्ताओं के बगावती सुर को थामने में सफल होता दिखाई नहीं दे रहा है।
शिरोमणि अकाली दल को भी अभी राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन वापस मिलती नजर नहीं आ रही है। पिछली बार पंजाब में जब चार सीटों पर उपचुनाव हुए थे, तब पार्टी ने एक भी विधानसभा सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, जिसके लिए पार्टी की काफी आलोचना हुई थी।

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क्‍या शिरोमणि अकाली दल टूट जाएगा?

अब लुधियाना पश्चिमी सीट पर शिरोमणि अकाली दल ने परोपकार सिंह के रूप में अपना उम्मीदवार खड़ा किया है। उधर श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों के बाद पार्टी में भर्ती की प्रक्रिया भी इसी समय चल रही है।

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इसे सुखबीर बादल का विरोधी गुट चला रहा है। ऐसे में, शिरोमणि अकाली दल भी दोफाड़ होता दिखाई पड़ रहा है। श्री अकाल तख्त साहिब की भर्ती कमेटी को आम लोगों का जो रिस्पांस मिल रहा है, उसे देखकर ऐसा नहीं लगता कि लुधियाना पश्चिमी सीट पर अकाली दल को ज्यादा समर्थन मिलेगा।

राज्‍य में भाजपा की क्‍या है स्थिति?

इस बीच, भारतीय जनता पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसमें अभी तक नेताओं के बीच कोई आपसी विवाद सामने नहीं आया है। भाजपा अपने दम पर इस सीट पर उतरी है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी को इस विधानसभा सीट पर अच्छी-खासी बढ़त मिली थी।

पार्टी ने अपने महासचिव जीवन गुप्ता को इस सीट से उतारकर यह संकेत दिया है कि किसी बाहरी उम्मीदवारों को लाकर पार्टी अपने मूल काडर को नाराज नहीं करेगी। अपने काडर में से ही किसी को सीट पर उतार कर उन्हें प्रोत्साहित करेगी।
पार्टी के इस कदम का इस क्षेत्र के वोटरों पर क्या असर होता है, यह तो 19 जून को होने वाले मतदान के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इतना स्पष्ट है कि पंजाब में सभी पार्टियां लुधियाना पश्चिमी सीट पर लड़ाई कर रही हैं, जबकि उनकी नजर 2027 के फरवरी महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। 

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