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दिहुली नरसंहार की कहानी: 44 साल पहले इन 24 दलितों की डकैतों ने की थी बर्बरता से हत्या, ऐसे हुई थी पूरी वारदात

फिरोजाबाद के जसराना कस्बे के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने 24 दलितों की हत्या की थी। 44 साल बाद नरसंहार मामले में इंसाफ मिला है। कोर्ट ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है। अदालत 18 मार्च को सजा सुनाएगी।
फिरोजाबाद के जसराना कस्बे के गांव दिहुली में 24 दलितों की सामूहिक हत्या के मामले में 44 साल बाद मंगलवार को अदालत ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया। दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को 18 मार्च को सजा सुनाई जाएगी। भगोड़ा घोषित आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना की फाइल को अलग करते हुए उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया।

इस हत्याकांड में कुल 17 आरोपी थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है जबकि एक भगोड़ा है। मंगलवार को फैसले से पहले एडीजे विशेष डकैती इंद्रा सिंह की अदालत में जमानत पर रिहा चल रहे कप्तान सिंह हाजिर हुआ, वहीं मैनपुरी जेल में बंद रामसेवक को पुलिस ने पेश किया, जबकि तीसरे आरोपी रामपाल की ओर से हाजिरी माफी मांगी गई।

दोहपर साढ़े तीन बजे अदालत ने साक्ष्यों और गवाही के आधार पर तीनों को दोषी करार दिया। रामपाल की हाजिरी माफी को निरस्त करते हुए उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर 12 मार्च को उसे अदालत में पेश करने के आदेश दिए। इसके बाद पुलिस अभिरक्षा में कप्तान सिंह और रामसेवक को जेल भेज दिया गया।

रामसेवक और कप्तान सिंह इन धाराओं में पाया दोषी
रामसेवक और कप्तान सिंह को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (जानलेवा हमला), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर उपद्रव करना), 149 (गैरकानूनी सभा या विधि विरुद्ध जमावड़ा), 449 (किसी के घर में घुसकर अपराध करना), 450 (गृह अतिचार) में दोषी करार दिया गया। वहीं, रामपाल को 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या करना), 216 ए (अपराधियों को शरण देना) में दोषी करार दिया गया।

ऐसे हुई वारदात
फिरोजाबाद जनपद के जसराना थाना क्षेत्र के ग्राम दिहुली (घटना के समय मैनपुरी का हिस्सा) में 24 दलितों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। वर्ष 1981 में 18 नवंबर की शाम 6 बजे की यह घटना थी। डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही के विरोध में हथियारों से लैस होकर दिहुली गांव में घुसकर महिलाओं, पुरुषों और बच्चों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई थीं। इसमें 24 लोगों की मौत हुई थी। बदमाशों ने सामूहिक हत्याकांड के बाद लूटपाट भी की थी। मामले में दिहुली के लायक सिंह ने 19 नवंबर 1981 को थाना जसराना में राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा के अलावा 17 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। मैनपुरी से लेकर इलाहाबाद तक यह मामला अदालत में चला। 19 अक्तूबर 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। जिला जज के आदेश पर विशेष डकैती कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई।

इन 24 लोगों की गोली मारकर की गई थी हत्या 
ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगार वती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, कुमारी शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर व प्रीतम सिंह की हत्या हुई थी।

ज्ञानचंद्र की खातिर अदालत में चलती रहेगी फाइल 
मामले में अदालत ने मंगलवार को तीन आरोपियों को भले ही दोषी करार दे दिया मगर इस नरसंहार की फाइल अभी अदालत में पूर्ण रूप से बंद नहीं होगी। दरअसल, एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना फरार है। अदालत ने 15 जुलाई 2023 को उसे भगोड़ा घोषित कर उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी किया था। जब तक उसकी गिरफ्तारी नहीं हो जाती या वह खुद सरेंडर नहीं कर देता, उसकी फाइल प्रचलित रहेगी।

गिरोह सरगना संतोषा और राधे सहित 13 आरोपियों की हो चुकी है मौत 
इस नरसंहार को अंजाम देने का आरोप जिस संतोष उर्फ संतोषा और राधे के गिरोह पर है। उस गिरोह के 17 सदस्यों को इस वारदात में अभियुक्त बनाया गया था। गिरोह सरगना संतोष उर्फ संतोषा और राधे सहित गैंग के बदमाश कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवरपाल, राजे उर्फ राजेंद्र, भूरा, प्रमोद राना, मलखान सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर पुत्र दुर्गपाल सिंह, युधिष्ठिर पुत्र मुंशी सिंह और पंचम पुत्र मुंशी सिंह की मौत हो चुकी है।
पांच गवाहों के सहारे सजा की दहलीज तक पहुंचा मुकदमा 
इस चर्चित नरसंहार में कोर्ट में तथ्य के गवाह के तौर पर लायक सिंह, वेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद, बनवारी लाल की कोर्ट में गवाही हुई। हालांकि इन सभी की अब मौत हो चुकी है। मगर, इनकी गवाही के सहारे ही पूरा केस कोर्ट में टिका रहा। कुमर प्रसाद की गवाही सबसे अहम रही। उन्होंने बतौर चश्मदीद कोर्ट में अपनी गवाही दी। कुमर प्रसाद की गवाही में नरसंहार और वेदराम की गवाही में हत्याओं के साथ ही लूट की भी बात कही गई।

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