फिरोजाबाद के जसराना कस्बे के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने 24 दलितों की हत्या की थी। 44 साल बाद नरसंहार मामले में इंसाफ मिला है। कोर्ट ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है। अदालत 18 मार्च को सजा सुनाएगी।
गवाह लायक सिंह मुकदमे के वादी भी थे, उन्होंने कोर्ट को बताया था कि वह 18 नवंबर 1981 को शाम 5 बजे के करीब गांव में अपने भाई के खेत पर गया हुआ था। वहां से वापस लौटते समय देखा कि 20-21 आदमी राइफल, बंदूक व तमंचा लिए गांव की तरफ आ रहे थे।
वह गांव के कुएं के पास गड्ढे में छिप गए। वहां से देखा कि राधे, संतोष, कप्तान, कमरूददीन, रामसेवक, श्यामवीर, कुंवरपाल के पास हथियार थे। सबसे पहले ज्वाला प्रसाद को जो अपने आलू के खेत को देख रहे थे, उनकी गोली मारकर हत्या की। वह सियाराम के खेत में जा गिरा। इसके बाद आरोपी आगे बढ़े और उनके मोहल्ले में घुसे।
यहां महाराज सिंह पर फायर किया, लेकिन वह बच गए। इसके बाद राधे, कुंवर सिंह ठाकुर के खंडहर पर चढ़ गया। अन्य लोग मोहल्ले के अंदर घुस गए और लूटमार करते हुए फायरिंग करने लगे। दो-ढाई घंटे तक वारदात को अंजाम दिया। बाद में लायक सिंह गांव में घुसे।
गवाहों ने अदालत को बताया था भयावह मंजर
जो जहां था उसे गोलियों से वहीं किया ढेर, कांप गई थी रूह
लायक सिंह ने बताया था कि हत्यारों के जाने के बाद देखा कि ज्वाला प्रसाद के अलावा अन्य 23 दलितों की और लाशें पड़ीं थीं। छह लोग घायल थे। राम सेवक, शीला, धन देवी, गजाधर सिंह, मुनेश, मुकेश, गंगा सिंह, राम प्रसाद, श्रृंगार मती. शिवदयाल, दुलारी, राजेंद्री, शांति देवी, राजेश, आशा देवी, भरत सिंह, दातारम, लालाराम, मुनेश, भूरे, मानिकचंद, लीलाधर, प्रीतम सिंह आदि की लाशें पड़ीं मिलीं।
लायक सिंह ने कोर्ट में बयान दिया था कि घटना से सवा साल पहले राधे व संतोष के गिरोह से पुलिस मुठभेड़ दिहुली में हुई थी। उसमें इनके गिरोह के दो सदस्यों को पुलिस ने पकड़ लिया था। मौके पर गांव के आंगन लाल, बाला सहाय, मिटवू लाल, महराज गवाह थे। पुलिस ने उनके सामने गिरफ्तारी व हथियार पकड़े जाने का उल्लेख किया था। इसी के कारण राधे और संतोषा का गैंग गांव वालों से दुश्मनी मानने लगा था।
नरसंहार के बाद की थी दावत, डेढ़ बजे तक रुके थे गांव में
तथ्य के गवाह के तौर पर वेदराम ने अदालत को बताया था कि वारदात में उनके दो बेटे भी मारे गए। नरसंहार के बाद आरोपी ठाकुरों के मोहल्ले में चले गए। वहां पंचम सिंह, रवेंद्र सिंह, युधिष्ठिर सिंह, रामपाल सिंह के घर पर रात को डेढ़ बजे तक रुके। वहां गिरोह ने दावत भी की थी। भयाहवता बताते हुए कहा कि रात तक वह डर के कारण अपने मोहल्ले में नहीं गए थे। गिरोह ने हत्याओं के बाद लूटपाट भी की थी। 200 ग्राम की करधनी, 12 लच्छे चांदी के और अन्य जेवर लूट ले गए थे। कुछ कपड़े भी लूट ले गए थे।
44 साल बाद मिला इंसाफ, तीन दोषी करार
फिरोजाबाद के जसराना कस्बे के गांव दिहुली में 24 दलितों की सामूहिक हत्या के मामले में 44 साल बाद मंगलवार को अदालत ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया। दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को 18 मार्च को सजा सुनाई जाएगी। भगोड़ा घोषित आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना की फाइल को अलग करते हुए उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया।
इस हत्याकांड में कुल 17 आरोपी थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है जबकि एक भगोड़ा है। मंगलवार को फैसले से पहले एडीजे विशेष डकैती इंद्रा सिंह की अदालत में जमानत पर रिहा चल रहे कप्तान सिंह हाजिर हुआ, वहीं मैनपुरी जेल में बंद रामसेवक को पुलिस ने पेश किया, जबकि तीसरे आरोपी रामपाल की ओर से हाजिरी माफी मांगी गई।
दोहपर साढ़े तीन बजे अदालत ने साक्ष्यों और गवाही के आधार पर तीनों को दोषी करार दिया। रामपाल की हाजिरी माफी को निरस्त करते हुए उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर 12 मार्च को उसे अदालत में पेश करने के आदेश दिए। इसके बाद पुलिस अभिरक्षा में कप्तान सिंह और रामसेवक को जेल भेज दिया गया।
रामसेवक और कप्तान सिंह इन धाराओं में पाया दोषी
रामसेवक और कप्तान सिंह को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (जानलेवा हमला), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर उपद्रव करना), 149 (गैरकानूनी सभा या विधि विरुद्ध जमावड़ा), 449 (किसी के घर में घुसकर अपराध करना), 450 (गृह अतिचार) में दोषी करार दिया गया। वहीं, रामपाल को 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या करना), 216 ए (अपराधियों को शरण देना) में दोषी करार दिया गया।