मेरा आज क्या है ?
और मेरा कल क्या होगा ?
शायद ये दो सवाल हर किसी के जीवन में एक बार आते होंगे जैसे आज मेरे जीवन में आए हैं। अगर वह व्यक्ति अपने जीवन का आँकलन कर रहा है तो।
लेकिन इन प्रश्नों का उत्तर कैसे पता किया जाए ये समझने की जरूरत है। दरअसल अध्यात्म या धर्म की बात करें तो मेरा आज और मेरा कल सिर्फ ओर सिर्फ मेरे कर्मों का प्रतिविम्ब हो सकता है इसके अलावा और कुछ नहीं।
क्यूंकी मैं अगर इस बात को समझ पा रहा हूँ, की मैं क्या कर चुके हैं ओर क्या कर रहा हूँ तो शायद मैं अपने किए हुए कामों को देख पा रहे हैं। और इसके माध्यम से अपने ऊपर पूछे गए दोनों सवालों का जवाब बड़ी ही सहजता से ढूंढ सकता हूँ।
लेकिन अक्सर मेरे साथ ऐसा होता है की मैं अपने कर्मों के आँकलन को तो छोड़ो में उनको देखना भी नहीं चाहता लेकिन ऐसा भी सिर्फ एक ही परिसतिथि में होता है जब मुझे मालूम है की जो मैंने किया है उसमे कुछ गलती है लेकिन मेरी है या किसी और की ये नहीं पता और न ही शायद मैं जानना चाहता हूँ।
और अगर कभी मन करता भी है तो भी मैं सिर्फ उन्हीं कर्मों को देखना पसंद करता हु जिनमे मैं अपने आप को गलत नहीं देखता हूँ। या कोई और व्यक्ति मुझे उसमे गलत न कह सके।
और इसका मतलब शायद ये है की मैं या तो अपनी गलतियों को देखना नहीं चाहता या फिर मैं अपनी गलतियाँ मानता ही नहीं हूँ।
लेकिन अगर मैं ये जानना चाहता हूँ की “मेरा आज क्या है, और कल क्या होगा?” तो ये केवल तभी संभव है जब मैं मेरे द्वारा किए गए कर्मों को निष्पक्ष होकर देखूँगा।
लेकिन अब यह पर ये सवाल है की निष्पक्ष मतलब क्या? मुझे किस्से निष्पक्ष होना है क्यूंकी जो मैंने किया है वो मुझे पता है तो किस्से निष्पक्ष हो जाऊँ? क्यूंकी यहाँ तों कोई दूसरा है ही नहीं है।
और इसी जगह शायद मैं गलती कर रहा हूँ। क्यूंकी मुझे खुद से ही खुद के लिए निष्पक्ष होना है।
लेकिन अब शायद फिर से वही सवाल या रहा है की खुद से ही खुद के लिए मैं निष्पक्ष कैसे हो सकता हूँ? या मुझे ये कैसे करना है?
अब यहाँ इन दोनों सवालों का अपना अलग मतलब है पहले सवाल में मुझे शंका है की मैं अपने बारे में निष्पक्ष कैसे हो सकता हूँ और या फिर मुझे निष्पक्ष होने की जरूरत ही क्या हैं और दूसरा मुझे निष्पक्ष कैसे होना है मैं ये जानना चाहता हूँ क्यूंकी मुझे मेरे पहले दोनों सवालों का जवाब जानना है।
और अगर मैं अपने आप को दूसरे प्रश्न में पाता हूँ तो इसका मतलब ये है की में अपनी अछाईयां और बुराईयां देख पा रहा हूँ। और जैसा की मैंने शुरुआत में कहा मेरे सामने जो दो प्रश्न हैं मुझे उनका जवाब पता लगाना है।
और वो प्रश्न क्या है?
यही की मेरा आज क्या है, और मेरा कल क्या हो सकता है ?
और जैसे की मैंने शुरुआत में कहा की जो मैंने अपने जीवन में कल किया था उसी से मेरा आज बना है। और ऐसा मैं ही नहीं कह रहा हूँ ऐसा सभी आध्यात्मिक गुरु और जानकार कहते हैं।
इसका मतलब ये हुआ की जो मैं आज जी रहा हूँ वो कल किए हुए कर्मों का नतीजा है। मतलब ये मेरे कल किए हुए कर्मों का प्रातविम्ब है। और जो मैं आज कर रहा हूँ वो मेरे कल की रूप रेखा बनाएगा की मेरा कल कैसा होने वाला है।
अब सवाल आता है की अगर आज मैं अपने जीवन मैं खुश हूँ या खुशहाल ज़िंदगी जी रहा हूँ या मैं अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ रहा हूँ तो उसके लिए मैंने कल क्या किया था ये ध्यान रखने की जरूरत है।
अगर मैं आज खुश हूँ और मेरे मन पर किसी प्रकार का कोई बोझ नहीं है या मैं कहूँ की मेरे कल की किए गए काम की मुझे शर्मिंदगी नहीं है और अपनी आत्मा के साथ बात करते हुए अपने आप को सही महसूस कर पा रहा हूँ तो इसका मतलब ये है की मैं अपने सभी कर्मों का सही आँकलन कर पा रहा हूँ।
क्यूंकी जब मैं अपने आप से बात करता हूँ तो कई बार मैं अपने आप को सही महसूस करता हूँ तो कई बार गलत भी पाता हूँ। और अगर मैं अपने आप को इन दोनों स्तिथियों में पाता हूँ तो मेरी समझ से मैं अपने आज के कर्मों के आँकलन से मैं अपने कल का अंदाजा लगा सकता हूँ और अपने कर्मों में सुधार भी कर सकता हूँ।
और शायद यही वो तरीका है जिससे मैं अपनी खुशी और सही कर्म में से किसे चुनना है इसका चुनाव बड़ी ही सहजता से कर सकता हूँ।
मैंने अपने अब तक जीवन में कई गलतियाँ की हैं और कुछ सही काम भी किए हैं जिसकी वजह से आज मेरा जीवन हैं अब मेरी चिंता ये है की मेरे जीवन का कल कैसा होगा तो उसके लिए मुझे अपने आज के कर्मों को कल के फल के हिसाब से करना होगा तभी मुझे वैसा कल मिलेगा जैसा मैं चाहता हूँ।
और यही शायद इस बात का जवाब है की मेरा कल कैसा होगा?