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कन्नड़ों को निजी कंपनियों में आरक्षण देने वाले विधेयक पर विवाद, उद्योगपतियों ने भेदभाव करार दिया

कर्नाटक कैबिनेट ने मंगलवार को एक विधेयक को मंजूरी दी। इस विधेयक में निजी क्षेत्र में प्रबंधन की 50 प्रतिशत नौकरियां और गैर-प्रबंधन की 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। वहीं, निजी कंपनियों में समूह-सी और डी के पदों के लिए स्थानीय लोगों को शत प्रतिशत आरक्षण देने भी मांग की गई है।

टेक उद्योग को हो सकता नुकसान
राज्य के कई उद्योगपतियों ने बुधवार को इस विधेयक का विरोध जताया। उन्होंने कहा कि यह भेदभावपूर्ण है और आशंका जताई कि टेक उद्योग को नुकसान हो सकता है। मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन सर्विसेज के अध्यक्ष मोहनदास पई ने कहा कि विधेयक फासीवादी और असंवैधानिक है।

यह भेदभावपूर्ण और संविधान के खिलाफ
उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा कि इस विधेयक को रद्द कर दिया जाना चाहिए। यह भेदभावपूर्ण और संविधान के खिलाफ है। साथ ही पई ने कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश को टैग करते हुए पूछा कि क्या सरकार को यह सिद्ध करना है कि हम कौन हैं? यह एनिमल फार्म जैसा फासीवादी बिल है। हम सोच भी नहीं सकते कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आ सकती है। क्या एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी?’

कुशल भर्ती के लिए छूट होना जरूरी
इसके अलावा, बायोकॉन लिमिटेड की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार ने कहा कि राज्य को इस विधेयक के कारण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी अग्रणी स्थिति पर असर नहीं पड़ने देना चाहिए और कुशल भर्ती के लिए छूट होनी चाहिए।

मजूमदार ने एक्स पर कहा, ‘एक तकनीकी केंद्र के रूप में, हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है। जबकि हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार देना है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए। ऐसी चेतावनियां होनी चाहिए जो कुशल भर्ती को इस नीति से छूट दें।’

भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया विधेयक
एएसएसओसीएचएएम  (ASSOCHAM) कर्नाटक के सह-अध्यक्ष और वाईयूएलयू के सह-संस्थापक आरके मिश्रा ने कहा कि विधेयक को भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर इसके  कार्यान्वयन की निगरानी के लिए हर निजी कंपनी में एक सरकारी अधिकारी नियुक्त किया जाता है, तो यह भारतीय आईटी और वैश्विक क्षमता केंद्रों को डरा देगा।

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उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि कर्नाटक सरकार की ओर से एक और प्रतिभाशाली कदम। स्थानीय आरक्षण को अनिवार्य करें और निगरानी के लिए हर कंपनी में सरकारी अधिकारी नियुक्त करें। यह भारतीय आईटी और जीसीसी को डराएगा।

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सीएम ने क्या कहा?
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक दिन पहले ही कहा था कि कर्नाटक मंत्रिमंडल ने राज्य के सभी निजी उद्योगों में ‘सी और डी’ श्रेणी के पदों के लिए 100 प्रतिशत कन्नडिगा (कन्नड़भाषी) लोगों की भर्ती अनिवार्य करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण की देखभाल करना है।

योग्य स्थानीय कर्मचारी ना होने पर देना होगा प्रशिक्षणविधेयक की एक प्रति पीटीआई के पास है, जिसके मुताबिक कोई भी उद्योग, कारखाना प्रबंधन श्रेणियों में पचास प्रतिशत और गैर-प्रबंधन श्रेणियों में सत्तर प्रतिशत स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करेगा। इसके साथ ही अगर उम्मीदवारों के पास कन्नड़ भाषा के साथ माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र नहीं है, तो उन्हें ‘नोडल एजेंसी’ द्वारा निर्दिष्ट कन्नड़ दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।

विधेयक में यह भी कहा गया है कि अगर कोई योग्य स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं तो सरकार या उसकी एजेंसियों के सक्रिय सहयोग से प्रतिष्ठानों को तीन साल के अंदर प्रशिक्षण देना होगा। यदि पर्याप्त संख्या में स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो कोई प्रतिष्ठान इस अधिनियम के प्रावधानों से छूट के लिए सरकार को आवेदन कर सकता है।

प्रत्येक उद्योग या कारखाने या अन्य प्रतिष्ठान को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन के बारे में नोडल एजेंसी को निर्धारित अवधि के भीतर बिल की प्रति में सूचित करना होगा।

नोडल एजेंसी की भूमिका किसी नियोक्ता या किसी प्रतिष्ठान के अधिष्ठाता या प्रबंधक द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों को सत्यापित करना होगी और इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन का संकेत देते हुए सरकार को एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी होगी।

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