जम्मू-कश्मीर एक बार फिर खबरों में है, लेकिन ये खबरें घाटी में पर्यटकों की बढ़ती संख्या और आम लोगों के जीवन में आ रहे सकारात्मक बदलाव को लेकर नहीं है। जम्मू-कश्मीर पिछले कुछ महीनों से आतंकी हमलों की एक लहर का सामना कर रहा है। कहीं तीर्थयात्रियों पर हमले हो रहे हैं तो कहीं आतंकी सेना के जवानों पर घात लगाकर हमले कर रहे हैं।
इन हमलों में एक नया ट्रेंड देखा जा रहा है। आतंकी अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले जम्मू क्षेत्र को निशाना बना रहे हैं। घाटी में आतंकी घटनाएं कम हो रही हैं।
इससे पहले कश्मीर घाटी ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का गढ़ थी, लेकिन सेना के आक्रामक अभियानों और आतंकियों के इकोसिस्टम पर लगातार प्रहार से घाटी में उनका तंत्र काफी कमजोर हो गया है। अब सवाल ये है कि खूबसूरत सियासत कैसे आतंक का गढ़ बन गई? यहां 1948 से लेकर अब तक के कश्मीर की कहानी…
पाकिस्तान शुरुआत से ही कश्मीर को हड़पना चाहता था। इसके लिए उसने 1948 और 1965 में कश्मीर पर हमला भी किया। युद्ध में नाकामी के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू किया। 1990 में शुरू हुआ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद आज भी जारी है।
आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर
आजादी से पहले कश्मीर अलग रियासत थी। करीब 2.1 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली इस रियासत पर डोगरा राजपूत वंश के राजा हरि सिंह का शासन था। डोगरा राजाओं ने पूरी रियासत को एक करने के लिए पहले लद्दाख को जीता। फिर 1840 में अंग्रेजों से कश्मीर छीना। उस समय इस रियासत की सीमाएं अफगानिस्तान और चीन से लगती थीं। ऐसे में कश्मीर रणनीतिक तौर पर बेहद अहम था।
विलय नहीं चाहते थे हरि सिंह
महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे और विलय से कतराते रहे। रणनीतिक महत्व और मुस्लिम बहुल होने के कारण पाकिस्तान कश्मीर को अपने में मिलाना चाहता था। अगस्त 1947 के दूसरे हफ्ते तक दोनों देशों की ओर से कश्मीर के विलय की कोशिशें जारी रहीं। हालांकि, इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
कश्मीर विलय संबंधी समझौते पर कब हुए हस्ताक्षर?
पाकिस्तान समर्थित कबायली हमले के बाद हरि सिंह भारत में विलय के लिए तैयार हुए। जब कबायलियों की फौज श्रीनगर की ओर बढ़ी तो हिंदुओं की हत्या और उनके साथ लूटपाट की खबरें आने लगीं। हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1948 को भारत में विलय के लिए संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए। अगले दिन कबायलियों से मोर्चा लेने भारतीय सेना श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से युद्ध विराम हो गया और कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। यही मौजूदा गुलाम जम्मू-कश्मीर (PoK) है।
जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा
नेशनल कान्फ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला पंडित जवाहर लाल नेहरू के मित्र थे। आजादी के बाद नेहरू ने उन्हें कश्मीर का प्रमुख बनाया। शेख ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए नेहरू को मनाया। उनके प्रस्ताव को गोपालस्वामी आयंगर ने 1949 में संविधान सभा में अनुच्छेद 306-ए के तौर पर रखा। बाद में यही अनुच्छेद 370 बना।
चुनाव में धांधली का आरोप
साल 1987 के विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोप लगे और चुनाव हारे नेताओं ने हथियार उठा लिए। आतंकियों ने 1989 में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी को अगवा किया। बेटी को छुड़ाने के लिए 13 आतंकी छोड़े गए।
सीधी लड़ाई में हारा पाक तो शुरू किए आतंकी कैंप
पाकिस्तान समझ गया कि वो सीधी लड़ाई में भारत से नहीं जीत सकता है। उसने गुलाम जम्मू-कश्मीर में आतंकी कैंप शुरू किए। आतंकी तैयार किए और कश्मीरी युवाओं को सशस्त्र विद्रोह के लिए भड़काना शुरू किया।
साल 2019 में हटाया गया अनुच्छेद 370
पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया। घाटी में अलगाववादियों और कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए। पाकिस्तान से होने वाली फंडिंग पर रोक लगी। जमीन पर इसका असर भी दिखा और घाटी में हालात सामान्य होने लगे। जम्मू-कश्मीर में निवेश बढ़ा और पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी।
कश्मीरी पंडितों का हुआ पलायन
साल 1990 के दौरान पाकिस्तान से प्रशिक्षण लेकर आतंकी लौटने लगे। आतंकी गैर मुस्लिमों की हत्या करने लगे। लाखों कश्मीरी पंडित बेघर हुए। हालात इतने बिगड़े कि 1990-1996 तक राज्यपाल शासन रहा। 1996 में चुनाव हुए।
अब तक कितने लोग मरे?
भारत सरकार के आंकड़ों की मानें तो साल 1990 से अब तक जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद की वजह से करीब 42,000 लोगों की मौत हुई है। जान गंवाने वालों में आम नागरिक, सुरक्षाकर्मी और आतंकवादी शामिल हैं। हालांकि, वास्तविक संख्या इससे कहीं बहुत अधिक है।