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ED के निदेशक का कार्यकाल बढ़ाने के खिलाफ SC करेगा सुनवाई, क्यों हुआ विरोध

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प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के चीफ डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को चुनौती देने वाली अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में अगले सप्ताह सुनवाई हो सकती है। केंद्र सरकार ने बीते साल नवंबर में ही दो अध्यादेश पारित किए थे, जिनके जरिए ईडी और सीबीआई के निदेशकों के कार्यकाल में 5 साल का विस्तार किया गया है। संजय मिश्रा के रिटायरमेंट के ठीक तीन दिन पहले ही केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आई थी। मिश्रा का कार्यकाल विस्तार इस साल 18 नवंबर तक के लिए ही किया गया था, लेकिन अध्यादेश के मुताबिक अब उनका टर्म और ज्यादा बढ़ सकता है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस की नेता जया ठाकुर ने जुलाई में केंद्र सरकार की ओर से संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार के फैसले को चुनौती दी थी। बुधवार को ठाकुर की अर्जी को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, हिमा कोहली और जेबी पारदीवाला की बेंच के समक्ष पेश किया गया। जजों ने इस पर कोई आदेश नहीं दिया, लेकिन मौखिक तौर पर कहा कि 18 नवंबर को इस पर सुनवाई की जाएगी। केंद्र सरकार ने इस अर्जी को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया है। केंद्र सरकार के वकीलों ने अर्जी को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि जया ठाकुर एक राजनीतिक दल से जुड़ी हैं, जिसके नेताओं पर ईडी की ओर से कार्रवाई की गई है।

वित्त मंत्रालय की ओर से एक एफिडेविट में इसी सितंबर में विस्तार को लेकर कहा था कि किसी नए व्यक्ति के लिए आते ही संगठन के कामकाज को समझना आसान नहीं होता। मंत्रालय का कहना है कि ईडी जैसे संस्थाओं के निदेशकों के कार्यकाल में 2 से 5 साल तक का विस्तार संगठन के कामकाज के लिहाज से जरूरी है। इसके अलावा ऐसे कई मामले होते हैं, जो अहम मोड़ पर होते हैं। ऐसे में उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस अधिकारी का बने रहना फायदेमंद हो सकता है, जिसके दौर में वे मामले दर्ज किए गए हों।

केंद्र ने बताया- क्यों जरूरी है ईडी अफसरों का कार्यकाल विस्तार

मंत्रालय का कहना है कि ऐसा इसलिए जरूरी होता है क्योंकि जिसके कार्यकाल में मामले दर्ज होते हैं, उस अधिकारी को केस की पूरी बैकग्राउंड पता होती है। ऐसे में यह जरूरी है कि उस अफसर को जरूरी हो तो कुछ वक्त के लिए विस्तार दे दिया जाए। गौरतलब है कि ईडी की शक्तियों को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जियां दाखिल हुई थीं। लेकिन शीर्ष अदालत ने ईडी की ओर से गिरफ्तारी के अधिकार को सही माना था। इसके अलावा जमानत के सख्त प्रावधानों पर भी सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई थी।

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