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दो बच्चों के डीएनए टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा- ये निजता का उल्लंघन

दो बच्चों की डीएनए टेस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह निजता के अधिकार के खिलाफ है। जस्टिस अनिरुद्ध बोस और विक्रम नाथ की बेंच ने कहा, ट्रायल कोर्ट ने बिल्कुल भी इस बात का ध्यान नहीं रखा कि बच्चे कोई सामान नहीं हैं जिन्हें फरेंसिक अनैलिसिस के लिए भेज दिया जाए।

दरअसल यह मामला दहेज प्रताड़ना का था। महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने उसे जबरदस्ती देवर के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। उसने अपने पति और उसके भाई के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 498ए, 323 और 354 के तहत केस दर्ज करवाया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने डीएनए फिंगरप्रिंट टेस्ट को कानूनन सही ठहराया था। हालांकि ट्रायल और हाई कोर्ट दोनों ने ही इस बात पर ध्यान नहीं दिया की बच्चे इस मामले में नहीं हैं। इसलिए बच्चों की डीएनए टेस्टिंग कराना ठीक नहीं है।

कोर्ट ने कहा, कई जगहों पर डीएनए टेस्ट कराना जरूरी हो जाता है लेकिन जब मामला ही कुछ और है तो बच्चों की निजता खत्म करना ठीक नहीं है। बेंच ने कहा कि डीएनए टेस्ट ना केवल अभी बच्चों के लिए बुरा साबित होगा बल्कि उनको जिंदगीभर की दिक्कत भी दे सकता है।

फरवरी 2017 में हाई कोर्ट ने महिला की मांग पर दोनों बच्चों का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दे दिया था। महिला ने इंडियन एविडेंस ऐक्ट के सेक्शन 45 के तहत डीएनए फिंगरप्रिंटिंग टेस्ट की मांग रखी थी। ट्रायल कोर्ट ने भी उसकी मांग मान ली थी। हालांकि महिला के पति ने इस याचिका को चुनौती दी। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चे पार्टी नहीं हैं।
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