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गृह मंत्रालय ने राज्यों को लिखा पत्र, अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ अपराधों में न हो अंडर रिपोर्टिंग

गृह मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार कमजोर वर्ग के खिलाफ होने वाले अपराधों के प्रति चिंतित है। इसलिए राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों पर त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों को लेकर गृह मंत्रालय ने चिंता व्यक्त की है। गृह मंत्रालय के महिला सुरक्षा विभाग की ओर से सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिखा गया है। इस पत्र में पिछले महीने हुई 26वीं समीक्षा बैठक के सुझावों का हवाला देते हुए गृह मंत्रालय ने राज्यों के प्रमुख सचिवों को सलाह दी है कि नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 व अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाए। 

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दरअसल, नागरिक अधिकार संरक्षण व अनुसूचित जाति व जनजाति अधिनियम की स्थिति के लिए नई दिल्ली में नौ जून को गृह मंत्रालय की समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया था। इस बैठक में अपराधों को रोकने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया गया। 

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गृह मंत्रालय ने अपनी एडवाइजरी में कहा गया है कि केंद्र सरकार का सबसे ज्यादा ध्यान अपराधों की रोकथाम पर है। इसलिए सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को सलाह दी जाती है कि वे समय-समय पर आपराधिक न्याय पर विशेष ध्यान दें। खासकर अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। 

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गृह मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार कमजोर वर्ग के खिलाफ होने वाले अपराधों के प्रति चिंतित है। इसलिए राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों पर त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है। ऐसे अपराधों के खिलाफ वैधानिक प्रावधानों और मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए। गृह मंत्रालय ने कहा, अपराधों का पता लगाने और जांच में प्रशासन व पुलिस की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता है। गृह मंत्रालय ने कहा, ऐसे मामलों में अंडर रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए।


गृह मंत्रालय ने कहा, कमजोर वर्ग के अधिकारों को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। पुलिस व प्रशासन को संवेदनशील बनने की आवश्कता है। पुलिस कर्मियों के लिए ऐसे विषयों पर कार्यक्रम, बैठकें व सेमिनार किए जाएं और इस तरह के कार्यक्रमों को विभिन्न पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों व अकादमियों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। वहीं पुलिस को इस मामले में विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।

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