आगरा

ताजमहल को लेकर इस समय देश में अलग अलग बहस छिड़ी हुई हैं। दरअसल ताजमहल का मसला कोई सिंधु सभ्यता का स्थान नहीं है कि जिसके बारे में जानकारी कम हो। ताजमहल को बनाए जाने, उसको बनाने वाले शिल्पी, खर्च, समय आदि सब कागजों में दर्ज है। ताज के निर्माण में कारीगरों के कई समूह लगे थे। इसका मुख्य शिल्पी उस्ताद अहमद लाहौरी था, जबकि भारतीय शैली के जानकार चिरंजी लाल प्रधान शिल्पी। बावजूद इसके ताजमहल के स्थापत्य, उसकी जमीन और निर्माण अवधि को लेकर कई बार सवाल उठाए गए हैं

इसकी शुरुआत पीएन ओक की पुस्तक से हुई, जिसमें उन्होंने स्थापत्य कला, शिखर पर मौजूद कलश आदि के जरिये इसे शिव मंदिर साबित करने की कोशिश की। कुछ लोग ताज को महोबा के चंदेल शासक परमर्दिदेव के समय की इमारत बताते हैं। ताज की जमीन पर दावा करने वाले इसे राजा मानसिंह का महल बताते हैं। सच्चाई क्या है, इसे इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली को समझकर जान सकते हैं।

इस्लामी वास्तुकला की पांच विशेषताएं हैं। पहली, आर्च यानी मेहराबदार दरवाजे। दूसरी गुंबद, तीसरी मीनारें, चौथी इनले वर्क और पांचवीं जालीदार खिड़कियां। ताजमहल में बने दरवाजे आर्च शैली के हैं। हिंदुस्तान में गयासुद्दीन बलबन के मकबरे में पहली बार 1287 में ट्रू आर्च का इस्तेमाल किया गया है। गुंबद को सबसे पहले कुतुबमीनार के पास कुब्बत उल इस्लाम मस्जिद में बनवाया गया। हालांकि बलबन के मकबरे में भी गुंबद था, लेकिन वह गिर गया।

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