आगरा
परिवर्तन शाश्वत है। प्राकृतिक बदलाव कुछ भी रूप ले सकता है मगर, भौतिक संसाधनों से किया गया बदलाव जनहितकारी होता है। आगरा में भी ऐसे तमाम बदलाव हुए। करीब 90 साल पहले स्थापित बिजलीघर कई दशक तक आगरा की शान रहा। हरिद्वार और हरदुआगंज के बाद सबसे बडा बिजलीघर था। कई दशकों तक आगरा को रोशन करता रहा। बिजलीघर करीब 40 साल पहले खामोश हो चुका है लेकिन, यहां पडा स्क्रैप विशालकाय बायलर्स, गगनभेदी चिमनी आदि इस बिजलीघर की विशालता की गवाही आज भी दे रही हैं। अब फिर बदलाव हो रहा है। शहर में मेट्रो ट्रेन दौडाई जाएगी। इसके लिए निर्धारित रूट पर ट्रैक बिछाया जा रहा है। स्टेशन तैयार किए जा रहे हैं। आगरा किला के नाम से एक स्टेशन बिजलीघर की जमीन पर भूमिगत बनाया जाना है। मेट्रो कंपनी ने जमीन का अधिग्रहण कर लिया है। जल्द ही यहां का स्क्रैप हटा दिया जाएगा और इसके साथ ही बिजलीघर का निशान भी मिट जाएगा। हां, चौराहे के नामकरण के रूप में बिजलीघर जीवंत रहेगा।
राजामंडी क्षेत्र के बल्का बस्ती निवासी वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना यादों में खो गए। सुबह और रात को तब गूंजते भोंपू का शोर मानो उनके कानों को झनझनाने लगा। बताया कि आगरा में सबसे पहले बिजली हरिद्वार से आती थी। इसके बाद अलीगढ के हरदुआगंज में पावर हाउस स्थापित हुआ। तब हरदुआगंज से बिजली आने लगी। पुस्तकों में दर्ज विवरण के अनुसार, अंग्रेज वायसराय लार्ड कर्जन ने आगरा में बिजली उत्पादन के लिए पावर हाउस की जरूरत महसूस की।
इसके बाद ही आगरा में बिजलीघर स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई। उस दौर में बिजली उत्पादन क्षेत्र में अग्रणी कलकत्ता( कोलकाता) बेस्ड मार्टिन बर्न कंपनी आगरा के लिए आगे आई। 1933 में बिजलीघर शुरू हो गया था। वे बताते हैं कि आगरा में तब बिजली का सबसे बडा उपभोक्ता जोंस मिल हुआ करती थी। सबसे पहला घेरलू कनेक्शन सेठ अचल सिंह के आवास पर था।
ताजमहल के कारण आगरा की पहचान है तो बिजलीघर चौराहा आगरा की पहचान है। बिजलीघर कभी आगरा की शान हुआ करती थी। इससे पहले इस जगह का नाम त्रिपोलिया चौक हुअा था। मुगल साम्राज्य की तत्कालीन राजधानी आगरा को बेहतर बनाने के लिए कई शानदार निर्माण और पुनर्निर्माण कराए गए थे। जामा मस्जिद भी इसी का एक भाग है। आगरा किला और जामा मस्जिद के बीच व्यापक दायरा था। राजा जय सिंह ने यहां पर चौक बनवाया अौर नाम दिया था त्रिपोलिया चौक।
जामा मस्जिद की तत्कालीन प्राकृतिक सुंदरता लुभावनी रही होगी क्योंकि इसकी तुलना माणिक और मोतियों की प्रसिद्ध मस्जिद बैतुल-मामूर की बीटी से की गई थी। यहां अष्टकोणीय (मुथम्मन) चौक था। जो त्रिपोलिया नामक बाज़ार से घिरा हुआ था। ये बाजार दिल्ली गेट और जामी मस्जिद के बीच बनाया गया था। आगरा किला रेलवे स्टेशन बनाने के लिए इस त्रिपोलिया चौक को जमींदोज कर दिया गया।