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ये है नया भारत, नार्थ-ईस्ट की बेटियां अब पढ़ रही हैं संस्‍कृत के श्‍लोक, पंडित की तरह कराने लगीं यज्ञ

आगरा

संस्कारों का ही ताना-बाना, संस्कारों की ही पकड़ रखिए मजबूत, संस्कारों से आप हैं और आप से संस्कार, बस यही है जीवन का सार। भौतिकी में गोल्ड मेडलिस्ट मोनिका सिंह की ये पंक्तियां अनुमंत्रम कन्याकुलम संस्था पर सही साबित होती हैं। संस्था ने सात बहनों के नाम से चर्चित नार्थ-ईस्ट के राज्यों में करीब एक दशक पहले भारतीय संस्कृति के बीज बोने की दिशा में प्रयास शुरू किए। ये बीज अब पौधे बनकर आने वाले समय में विशाल वृक्ष का रूप लेने की ओर अग्रसर हैं।

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वर्ष 2004-05 की बात है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडी़ न्यू आगरा की रहने वाली डाक्टर पूर्ति चतुर्वेदी नार्थ-ईस्ट के राज्यों में घूमने गई थीं। वहां पर उन्होंने देखा कि इन राज्यों के लोग भारतीय संस्कृति से अपरिचित हैं। जिस पर उन्होंने वहां के लोगों को भारतीय संस्कृति व संस्कार से रूबरू कराने की ठानी। उन्होंने पीएचडी के बाद दो साल तक दिल्ली विश्‍वविद्यालय के अरविंदो कालेज में दो वर्ष तक पढ़ाया। करीब एक दशक पहले अनुमंत्रम कन्याकुलम संस्था की नींव पड़ी। नार्थ-ईस्ट राज्यों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अभिभावकों से बातचीत की। उन्हें बच्चों की आधुनिक व सांस्कृतिक शिक्षा के लिए प्रेरित किया। अभिभावक बालिकाओं को को संस्था में शिक्षा दिलाने के लिए तैयार हो गए

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संस्था की अध्यक्ष डाक्टर पूर्ति सिंह और ट्रस्टी मोनिका सिंह ने बताया नार्थ-ईस्ट के मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा आदि राज्यों की बेटियों को यहां लाकर सीबीएसई पाठ्यक्रम पर बारहवीं तक शिक्षित कर रहे हैं। इसके साथ ही वैदिक शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों से शिक्षित कर रहे हैं। बेटियों को यज्ञ व हवन करने की विधि सिखाई जाती है। उन्हें पहली कक्षा से बारहवीं तक अाधुनिक शिक्षा के साथ ही यज्ञ-हवन सिखाया जाता है।

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