आगरा
कान्हा की लीलाओं से जुड़े ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग को अब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) संवारेगा। मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा में 361.5 किमी परिक्रमा मार्ग टू-लेन से लेकर सिक्सलेन तक विस्तारित किया जाएगा। मार्ग के पड़ाव स्थल भी विकसित किए जाएंगे। फिलहाल इसके लिए पांच हजार करोड़ का प्रारंभिक प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो करीब एक साल में काम शुरू हो जाएगा। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग जन-जन की आस्था से जुड़ा है। 361.5 किमी क्षेत्रफल में फैले इस परिक्रमा मार्ग में करीब 45 किमी का एरिया राजस्थान के भरतपुर में आता है और करीब एक किमी क्षेत्र हरियाणा के पलवल में है। जबकि बाकी का क्षेत्र उत्तर प्रदेश में है। करीब दो वर्ष पहले उत्तर ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने इसके लिए एक सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की थी। ये रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को भेजी गई थी। बाद में सांसद हेमामालिनी ने इसके लिए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिलकर इस पर चर्चा की। केंद्र सरकार से इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल गई है। ये काम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण करेगा। इस काम को हरी झंडी मिलने के बाद एनएचएआइ ने फिलहाल जो संभावित रिपोर्ट तैयार की गई है, उसमें करीब पांच हजार की लागत आएगी। ये मार्ग टू लेन होगा, जहां जरूरत पड़ी तो वहां फोर से सिक्सलेन तक किया जाएगा। सड़क के दोनों ओर 12 से 15 फीट के फुटपाथ बनाए जाएंगे। भरपूर पौधारोपण भी किया जाएगा। पड़ाव स्थलों के बारे में श्रद्धालुओं को जानकारी हो सके, इसके लिए साइनेज भी लगाए जाएंगे। पड़ाव स्थलों पर श्रद्धालुओं के आराम के लिए टीनशेड आदि की व्यवस्था की जाएगी। पूरे मार्ग पर लाइटिंग की व्यवस्था होगी। एनएचएआइ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर विजय कुमार जोशी ने बताया कि अभी योजना प्रारंभिक चरण में है।
ब्रज चौरासी परिक्रमा मार्ग आस्था का मार्ग है। इस मार्ग में 31 पड़ाव स्थल हैं। इनमें मथुरा, मधुवन, तालवन, कमोध वन, शांतनु कुंड, बहुलावन, राधा कुंड, कुसुम सरोवर, चंद्रसरोवर, जतीपुरा, डीग, परमदरा, कामवन, बरसाना, नंदगांव, कोकिला वन, जाब, कोटवन, पैंगांव, विश्राम घाट, शेरगढ़, चीरघाट, बच्छवन, वृंदावन, महावन, लोहवन, श्रीदाऊजी, श्रीमद्गोकुल आदि 31 स्थल हैं।
ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है। इस क्षेत्र में करीब 13 सौ गांव आते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
84 कोस परिक्रमा के लिए स्थान, गांव और रास्ते पहले से तय हैं। श्रद्धालु इसी रास्ते से परिक्रमा करते हैं। कीचड़, कंकड़-पत्थर के रास्तों पर ही चलकर श्रद्धालु परिक्रमा पूरी करते हैं। कोई भी श्रद्धालु दूरी कम करने के लिए शार्टकट या दूसरे रास्तों से होकर नहीं गुजरता और ऐसा करने पर उसकी परिक्रमा अधूरी मानी जाती है।